कवितापद्य साहित्य

छाए बादल

आसमान मे छाए बादल देख ,
बचपन. की याद आती है ,
कैसे झुम उठते थे सब ,
जब वर्षा होने लगती थी ,
संगी साथी मिल सब ,
नहाने मे लग. जाते थे ,
आपस मे मिलजुल कर ,
खुब. मतवाले रहते थे ,
नही किसी का परवाह रहता,
नही किसी का डर ,
सब मिलजुल कर ही ,
खुब. मस्ती करते थे ,
बचपन का जमाना ,
होता ही बहुत प्यारा है,
……निवेदिता चतुर्वेदी….

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४

One thought on “छाए बादल

  • विजय कुमार सिंघल

    बचपन की यादें मधुर होती हैं।

Comments are closed.