बाल कविता

बाल गीत

जैसे महका , नन्दन कानन
अपनी दुनिया , अपना बचपन ||
गिरते – उठते , फिर गिर पड़ते
डगमग – डगमग चलते रहते
संभल – संभल कर बढ़ता जीवन |
अपनी दुनिया , अपना बचपन ||
सारे घर मे पा पा…मा .मा
जीवन की धुन सा.रे..गा.मा ,
पग – पग नाचा ,थिरका आँगन |
अपनी दुनिया , अपना बचपन ||
कली – कली खिलता शरमाता
फूल – फूल हँसता – मुस्काता ,
महका – महका घर का उपवन |
अपनी दुनिया , अपना बचपन ||

— अरविंद कुमार साहू

 

अरविन्द कुमार साहू

सह-संपादक, जय विजय