कविता

बुढापा…

सूखे तालाब सा है बुढापा
ना कमल खिलते है
ना लहरे चेतन है
बस एक अजीब सी खामोशी है
एक अजीब सा सूनापन है।

मेरी आवाज मे
अब कशिश नही दर्द की कराह बाकी है
मुस्कान खो गई है
सिर्फ आह बाकी है
रिश्ते भी है,सब अपने भी है
मगर, अपनेपन का अहसास नही है
सिर्फ निबाह बाकी है।

कभी देखता था राह जिनकी
घर ना आने तक
बैचेन होकर
आज उन्ही की
बैचेनी का सबब बन गया हूं
कभी पालक था जिनका मैं
उन्ही का मोहताज
अब बन गया हूं।

कभी मरते थे जो मेरी सुन्दरता पर
सब ओझल हो गये है
अब कोई उंगली पर नही रखता
मेरे आंसू बोझल हो गये है
मेरी सांसो मे अब खुशबु नही है
मेरे आंचल मे अब बहार नही है
मैं बुढापा हूं, बुढापा
असहाय, अकेला, लाचार
मुझसे किसी को प्यार नही है
मुझसे किसी को प्यार नही है….

सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.