बुढापा…
सूखे तालाब सा है बुढापा
ना कमल खिलते है
ना लहरे चेतन है
बस एक अजीब सी खामोशी है
एक अजीब सा सूनापन है।
मेरी आवाज मे
अब कशिश नही दर्द की कराह बाकी है
मुस्कान खो गई है
सिर्फ आह बाकी है
रिश्ते भी है,सब अपने भी है
मगर, अपनेपन का अहसास नही है
सिर्फ निबाह बाकी है।
कभी देखता था राह जिनकी
घर ना आने तक
बैचेन होकर
आज उन्ही की
बैचेनी का सबब बन गया हूं
कभी पालक था जिनका मैं
उन्ही का मोहताज
अब बन गया हूं।
कभी मरते थे जो मेरी सुन्दरता पर
सब ओझल हो गये है
अब कोई उंगली पर नही रखता
मेरे आंसू बोझल हो गये है
मेरी सांसो मे अब खुशबु नही है
मेरे आंचल मे अब बहार नही है
मैं बुढापा हूं, बुढापा
असहाय, अकेला, लाचार
मुझसे किसी को प्यार नही है
मुझसे किसी को प्यार नही है….
सतीश बंसल