अबला नही हूं मैं…
अबला नही हूं मैं
परम्परा की चूडियां पहनी है
संस्कार का सिन्दूर सजाया है
हाथो मे मेहंदी जरूर है
पर, अबला नही हूं मैं
माना हमेशा पीछे चलती हूं
जरुरत के हिसाब से
हर सांचें मे ढलती हूं
भले धर्म निभाने को
तेरी मर्जी पर पलती हूं
पर अबला नही हूं मैं
मानती हूं तुम्हे अपना भगवान
मिला दी है तुम्हारे नाम मे पहचान
सौंपा हैं अपना सर्वस तुम्हे हितैषी जान
पर अबला नही हूं मैं
सहती हूं तुम्हारा हर जुल्म
झेलती हूं तुम्हारा दुत्कार
नारी धर्म निभाती हूं
इसलिये सब सह जाती हूं
पर अबला नही हूं मैं
और ये तुम भी जानते हो
श्रृष्टा हूं
इसलिये निभाती हूं
हर दुख हर दर्द सह जाती हूं
पालती हूं तो दुर्गा
और विनाशती हूं तो चंडी बन जाती हू
अबला नही हूं मैं
अबला नही हूं मैं
सतीश बंसल