कविता

पत्थर की मूरत

एक पत्थर के मूरत पर सजाएं गए है करोड़ो के गहने
वही बाहर चौखट पर एक बच्चे को मैंने
एक – एक रूपये के लिए तरसते देखा है..

रखे हुए थे छपनो कोटि के भोग और मिठाईया
उस मूरत के पास..
मंदिर के सीढ़ियो पर बैठे हुए एक भूखे को मैंने
रोटी के लिए तरसते देखा है,

सजाई हुई है कीमती चादरों से वो मजार जहाँ
बाहर बैठे एक लाचार को मैंने ठण्ड में ठिठुर कर मरते देखा है,

कोई दे आया करोड़ो की दौलत गुरद्वारे में हाल के लिए ,
मगर घर में 500 रूपये के लिए
एक मालिक को अपनी नोकरानी को बदलते देखा है।

सुना है चढ़ गया था कोई सलीब पे दुनिया का दर्द मिटाने के लिए
आज चर्च में बेटे की मार से तड़पते माँ बाप को देखा है।

जलाती थी जहाँ अखन्ड ज्योति देसी घी की दिन रात एक पुजारन ,
आज उसे प्रसव में कुपोषण के कारण मौत से लड़ते देखा है ।

जो कभी दिखा भी नहीं जीते जी बूढ़े माँ-बाप के पास की कही उन्हें ऐक वक़्त की रोटी देनी पर जाए
आज मैंने लगाते उसको भंडारे मरने के बाद देखा है।

अपने घर की लाड़ली बेटी को जबरन दी थी बिदाई जिस बाप ने
आज जलते हुए उसे ससुराल में एक बाप नेें सरे आम देखा है ।

एक भयानक मौत मर गया वो पंडित दुर्घटना में,
जिसे खुद को काल सर्प,तारे और हाथ की लकीरो का माहिर लिखते देखा है ।

जिस घर में रहने वाले भाइयो के एकता की देता था जमाना कभी मिसाल दोस्तों ,
आज उसी के आँगन में मैंने खिंचती हुए दीवार को देखा है।

वक़्त आने पर हो जाता है सबके जमा की हुई
साम्राज्य का सर्वनास
ऐसे मैंने बहुत ही बड़े बड़े रावण राज देखा है..

अखिलेश पाण्डेय

नाम - अखिलेश पाण्डेय, मैं जिला गोपालगंज (बिहार) में स्थित एक छोटे से गांव मलपुरा का निवासी हु , मेरा जन्म (23/04/1993) पच्छिम बंगाल के नार्थ चोबीस परगना जिले के जगतदल में हुआ. मैंने अपनी पढाई वही से पूरी की. मोबाइल नंबर - 8468867248 ईमेल आईडी [email protected] [email protected] Website -http://pandeyjishyari.weebly.com/blog/1