बेटी बचाओ
बेटियों को कहाँ छुपायें
यहाँ तो दरिन्द्गो की भरमार है
मर रही हैं बेटियां
यहाँ सुरक्षा का कहना बेकार है
आँसू टपक रहे हैं
ये हैं खून के आँसू लालदार हैं
मिल जाये वहशी
फांसी की रस्सी के हक़दार हैं
जग सूना बेटी के बिना
नयन आसूँ के पहरेदार हैं
कुछ तो करना होगा
नहीं तो ये जीवन बेकार है
बेटियों की सुरक्षा
पर जीवन न्योछावर है
कानून को कड़ा करो
यही सरकार से दरकार है
— संजय वर्मा “दृष्टि “