राजनीति

आईना बोलता है

जब भी भारत और पाकिस्तान कोई द्विपक्षीय बात करने को उद्यत होते हैं तो पाकिस्तान हुर्रियत का पासा फेंक देता है और भारत ऐतराज जताता रह जाता है। इतना तो स्पष्ट है कि वह हमसे बात ही नहीं करना चाहता क्योंकि वह काश्मीर के मुद्दे को समाप्त नहीं करना चाहता। सीधी सी बात है, काश्मीर है तो पाकिस्तान के ज़मीनदार हुकमरान अपनी आवाम की नज़र अपने करप्ट मनसूबों से हटाये रखने में सफल होते रहेंगे। उनकी अय्याशी की ज़िन्दगी को ग्रहण न लगे इसके लिये उन्हें काश्मीर जैसा एक माइंड डाईवर्टर अत्यंत आवश्यक है।

हम अगर उनसे बात करना चाहते हैं तो हमें उनको हुर्रियत का राग अलापने ही नहीं देना चाहिये। इसमें मुश्किल भी कुछ नहीं है। हमें उनसे साफ साफ कहना होगा कि हमारे देश में उन्हें  किसी भी अलगाववादी संगठन से बात करने की इजाज़त नहीं है। वे अपने देश में चाहे जिससे और चाहे जैसी बात करें पर, हमारे देश में उन्हें हमारे बताए आचरण पर चलना होगा । और जब वे हुर्रियत आदि को अपने यहाँ बुलाएँ तो इन संगठनों को पासपोर्ट न दिया जाय। तभी उन्हें हमारी शर्तों पर बात करने पर मजबूर होना पड़ेगा।

इसमें क्या दुविधा है, वह मेरी समझ से बाहर है। हाँ, अगर हमारी मंशा भी पाकिस्तान के साथ चूहा-बिल्ली का खेल खेलने की है तो ये बयानबाज़ी और आडम्बर त्याग देना चाहिये । अपने अति प्रबुद्ध नेताओं को मै यही बताना चाहता हूँ की भारत की जनता और पाकिस्तान कि जनता के बौद्धिक स्तर में बहुत फर्क है।

मनोज पाण्डेय 'होश'

फैजाबाद में जन्मे । पढ़ाई आदि के लिये कानपुर तक दौड़ लगायी। एक 'ऐं वैं' की डिग्री अर्थ शास्त्र में और एक बचकानी डिग्री विधि में बमुश्किल हासिल की। पहले रक्षा मंत्रालय और फिर पंजाब नैशनल बैंक में अपने उच्चाधिकारियों को दुःखी करने के बाद 'साठा तो पाठा' की कहावत चरितार्थ करते हुए जब जरा चाकरी का सलीका आया तो निकाल बाहर कर दिये गये, अर्थात सेवा से बइज़्ज़त बरी कर दिये गये। अभिव्यक्ति के नित नये प्रयोग करना अपना शौक है जिसके चलते 'अंट-शंट' लेखन में महारत प्राप्त कर सका हूँ।