दृढ़ता कभी आश्रित नहीं…
जीवन कभी मोहताज नहीं होता
मोहताज तो होता है —
हीन विचार, निजी स्वार्थ और क्षीण आत्मविश्वास।
क्योंकि यह मृगमरीचिका व्यक्ति को
उस वक़्त तक सेहरा में भटकाती है
जब तक कि
वह पूर्णरूपेण निष्प्राण नहीं हो जाता
इसके विपरीत
जो दृढनिश्चयी, महत्वकांक्षी व् स्वाभिमानी है
वह निरंतर
प्रगति की पायदान चढ़ता हुआ
कायम करता है वो बुलंद रुतबा कि —
यदि वो चाहे तो खुदा को भी छू ले।
वह शख्स घोर निराशा
एवम दुःख के क्षणों को ऐसे मिटा देता है
जैसे —
किरणों के स्फुटित होने पर
तम का सीना स्वयमेव चिर जाता है।
प्रेरक लेखन