कविता

दृढ़ता कभी आश्रित नहीं…

जीवन कभी मोहताज नहीं होता
मोहताज तो होता है —
हीन विचार, निजी स्वार्थ और क्षीण आत्मविश्वास।

क्योंकि यह मृगमरीचिका व्यक्ति को
उस वक़्त तक सेहरा में भटकाती है
जब तक कि
वह पूर्णरूपेण निष्प्राण नहीं हो जाता

इसके विपरीत
जो दृढनिश्चयी, महत्वकांक्षी व् स्वाभिमानी है
वह निरंतर
प्रगति की पायदान चढ़ता हुआ
कायम करता है वो बुलंद रुतबा कि —
यदि वो चाहे तो खुदा को भी छू ले।

वह शख्स घोर निराशा
एवम दुःख के क्षणों को ऐसे मिटा देता है
जैसे —
किरणों के स्फुटित होने पर
तम का सीना स्वयमेव चिर जाता है।

महावीर उत्तरांचली

लघुकथाकार जन्म : २४ जुलाई १९७१, नई दिल्ली प्रकाशित कृतियाँ : (1.) आग का दरिया (ग़ज़ल संग्रह, २००९) अमृत प्रकाशन से। (2.) तीन पीढ़ियां : तीन कथाकार (कथा संग्रह में प्रेमचंद, मोहन राकेश और महावीर उत्तरांचली की ४ — ४ कहानियां; संपादक : सुरंजन, २००७) मगध प्रकाशन से। (3.) आग यह बदलाव की (ग़ज़ल संग्रह, २०१३) उत्तरांचली साहित्य संस्थान से। (4.) मन में नाचे मोर है (जनक छंद, २०१३) उत्तरांचली साहित्य संस्थान से। बी-४/७९, पर्यटन विहार, वसुंधरा एन्क्लेव, दिल्ली - ११००९६ चलभाष : ९८१८१५०५१६

One thought on “दृढ़ता कभी आश्रित नहीं…

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    प्रेरक लेखन

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