बारिश की बूंदे मन को स्पर्श कर रही है
बारिश की बूँदें मन को स्पर्श कर रही है,
लगता है वह भी भीड़ में अपनों से बिछड़ रही है,
कोमल पत्तों से लुढकती बूँदें ,
अपनी जिन्दगी को बखुबी जी रही है,
कहीं दूब पर ठहरी कुछ बूँदें,
अपना वजूद तलाश रही है,
सीमट रही है जमीं में जैसे,
जमीं को जीवित कर रही है,
हर पल ये बूँदें कुछ करतब दिखाती,
मस्ती में नंगे तारों पर झुल रही है,
बारिश की बूँदें पत्तों पर ठहर कर,
पेड़ के तने को तृप्त कर रही है,
सागर में गिरती बारिश की बूँदें ,
उसके अरमान को पुरा कर रही है,
सीढ़ियों से फिसलती ये बूँदें ,
किसी झरने का अहसास करा रही है,
सावन में हर तरफ अपने समाज को देख,
ये बूंदे इठलाती घुम रही हैं,
रंग नहीं इन बूंदों का फिर भी,
ये हर रंग में समा रही है,
बदन पर गिरती ये बूंदे,
शितलता का अहसास करा रही है,
बारिश में बिजली और बादल कौन देखता है?
ये बरसती बूंदे ही बारिश का वजूद बता रही है,