आदमी और इंसान,
करना था जिन्हे मिल कर सब काम, ग़रीब के निवाले के लिए,
वह सब कहीं मस्जिद और कहीं शिवाले के लिए लड़ जाते हैं,
कहीं राम कहीं रहीम के नाम पर,सियासत के खेल रचाते हैं,
और इस वोट के चक्कर में न जाने कितने ज़ुर्म कर जाते हैं ,
सर्द रात में भी चढ़ती रहती हैं चादरें, जिस पीर की मज़ार पर ,
वहीँ बाहर कई गरीब मज़दूर, उस रात ठंड लगने से मर जाते हैं,
वहीँ बाहर कई गरीब मज़दूर, उस रात ठंड लगने से मर जाते हैं,
आओ हम भी कुछ सीखें ले उन बेज़ुबान परिंदों से कुछ प्यार,
जिनका बसेरा है कभी मस्जिद कभी किसी मंदिर की दीवार,
ज़रुरत है कि सबको मिले, जीविका के लिए अच्छा रोज़गार,
हम ने काम वालों को निकम्मा कर दिया,कर कर के हडताल,
न जाने कब आदमी बन कर इंसान, परोपकार की बाते करेगा,
इंसान ना बना आदमी, तो एक दिन “कुत्ते “की मौत मरेगा,—————-जय प्रकाश भाटिया