सरल, सरस भावों की धारा ,
जय हिन्दी , जय भारती ।
शब्द शब्द में अपनापन है ,
वाक्य भरे हैं प्यार से ,
सबको ही मोहित कर लेती
हिन्दी निज व्यवहार से ,
सदा बढ़ाती भाई-चारा ,
जय हिंदी , जय भारती ।
नैतिक मूल्य सिखाती रहती ,
दीप जलाती ज्ञान के ,
जन -गण -मन में द्वार खोलती
नूतनतम विज्ञान के ,
नव-प्रकाश का नूतन तारा ,
जय हिन्दी, जय भारती ।
देवनागरी , भर देती है
संस्कृति की नव-गंध से ,
इन्द्रधनुष से रंग बिखराती
नव-रस , नव -अनुबंध से ,
विश्व-ग्राम बनता जग सारा ,
जय हिन्दी , जय भारती ।
— त्रिलोक सिंह ठकुरेला