कविता

पगडंडी

पहले मेरे गाँव तक
सिर्फ एक पगडंडी आती थी
इस पगडंडी से लोग पैदल आते जाते थे
लोगो के कंधे पर होते थे
छोटे छोटे थैले
जिनमे होती थी छोटी छोटी इच्छाये
कुछ बहुत ही छोटे छोटे इरादे
तब सूरज भी पिछवाड़े के पोखर से उगता था
वो एक पगडंडी कितने दिलो को जोड़ती थी
काश दुनिया में फिर से पगडंडी हो जाये
कुछ तो यहाँ अपने हो जाए
दिलो से जुड़ जाए !

डॉली अग्रवाल

डॉली अग्रवाल

पता - गुड़गांव ईमेल - dollyaggarwal76@gmail. com