स्नेह के धागे
आज की भागती-दौडती जिंदगी में हर रिश्ता धुमिल होता जा रहा है | राखी जो भाई-बहन के स्नेह-प्रेम का पावन त्यौहार है , आज की इस मशीनी जिंदगी में कहीं खोता जा रहा है और उसी के साथ-साथ खुश्क होता जा रहा है स्नेह रस,,, जो बचा रह गया है वो केवल औपचारिक रिश्ता | सब अपनी अपनी दुनिया मे इतने व्यस्त हैं पैसे कमाने की दौड में कि खुद भी मशीन बनते जा रहे हैं | स्नेह व संवेदनाओं का स्थान अब औपचारिकता ने ले लिया है, भाव कहीं इसी भाग-दौड में सूख से गये हैं उसी के संदर्भ में मैंने कुछ पंक्तियाँ लिखी हैं–
स्नेह के मजबूती से बंधे,
महीन तारों के छोरों पर बंधी गांठ को,
जाने किसने खोल दिया,
मजबूती से बंधा होता था,
ना जाने कहाँ बिखर गया
बिखरकर पवन के संग -2
जाने किस ओर उड गया
जो अब ढूंढे से भी नही मिलता,
तो सिर्फ
सच्ची मार्मिक अभिव्यक्ति
हार्दिक आभार विभा जी !!!
हार्दिक आभार विभा जी !!!
बेहतरीन सृजन ख़ुशी जी
हार्दिक आभार वैभव जी !!!
हार्दिक अभार वैभव जी !!!