कविता

स्नेह के धागे

आज की भागती-दौडती जिंदगी में हर रिश्ता धुमिल होता जा रहा है | राखी जो भाई-बहन के स्नेह-प्रेम का पावन त्यौहार है , आज की इस मशीनी जिंदगी में कहीं खोता जा रहा है और उसी के साथ-साथ खुश्क होता जा रहा है स्नेह रस,,, जो बचा रह गया है वो केवल औपचारिक रिश्ता | सब अपनी अपनी दुनिया मे इतने व्यस्त हैं पैसे कमाने की दौड में कि खुद भी मशीन बनते जा रहे हैं | स्नेह व संवेदनाओं का स्थान अब औपचारिकता ने ले लिया है, भाव कहीं इसी भाग-दौड में सूख से गये हैं  उसी के संदर्भ में मैंने कुछ पंक्तियाँ लिखी हैं–

राखी के कच्चे धागों से लिपटे,
स्नेह के मजबूती से बंधे,
महीन तारों के छोरों पर बंधी गांठ को,
जाने किसने खोल दिया,

जो स्नेह उन कच्चे धागों में,
मजबूती से बंधा होता था,
इनकी डोर से छूट,
ना जाने कहाँ बिखर गया
 और छूटकर,
बिखरकर पवन के संग -2
जाने किस ओर उड गया
कहाँ छूट गया है वो स्नेह,
जो अब ढूंढे से भी नही मिलता,
धागों के इन सूत्रों में बाकी रह गया है,
तो सिर्फ
बनावटीपन,
खोखलापन
और
झूठा दिखावा
शशि शर्मा ‘खुशी’

शशि शर्मा 'ख़ुशी'

नाम- शशि शर्मा 'खुशी'...जन्मतारीख - 6/6/1970 .... जन्म स्थान- सिलारपुर (हरियाणा) व्यवसाय - हाऊसवाईफ मूल निवास स्थान हनुमानगढ (राजस्थान) है | पतिदेव श्री अरूण शर्मा, की जॉब ट्रांसफरेबल है सो स्थान बदलता रहता है | पढने का बेहद शौक है,,,, अब लेखन भी शुरू कर दिया है | कुछ विविध पत्र-पत्रिकाओं में मेरी कवितायें प्रकाशित हो चुकी हैं |

6 thoughts on “स्नेह के धागे

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    सच्ची मार्मिक अभिव्यक्ति

    • शशि शर्मा 'ख़ुशी'

      हार्दिक आभार विभा जी !!!

    • शशि शर्मा 'ख़ुशी'

      हार्दिक आभार विभा जी !!!

  • वैभव दुबे "विशेष"

    बेहतरीन सृजन ख़ुशी जी

    • शशि शर्मा 'ख़ुशी'

      हार्दिक आभार वैभव जी !!!

    • शशि शर्मा 'ख़ुशी'

      हार्दिक अभार वैभव जी !!!

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