कविता

कविता

है ……
मेरे अन्दर भी
अद्भुत और रहस्य का…..F
एक आलम !!

देख कैसे
रंग दिया है तुमने
मेरे अंग अंग को
प्रेम की बौछारों से !

देख कैसे
श्रृंगार दिया है
मेरा वजूद
मुहब्बत के शाब्दिक जेवरो से !!

देख कैसे
झिंझोर दी है तुमने
मेरी हस्ती
चाहत की आगोश मे !!!

और मैने….
खोल दिया द्वार प्रीत भण्डार का
धीरे से
आ आज परस ….
अनंत खजाना पूर्ति का !!!

यही है जीना ,
अब जीना ….
होकर मदहोश ,इश्क के नभ मे !
तुम और मै ….मै और तुम !!
*****रितु शर्मा *****

रितु शर्मा

नाम _रितु शर्मा सम्प्रति _शिक्षिका पता _हरिद्वार मन के भावो को उकेरना अच्छा लगता हैं

3 thoughts on “कविता

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी कविता।

  • वैभव दुबे "विशेष"

    बहुत खूब रितु जी

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