सामाजिक

कन्या पढ़ेगी भी , उड़ेगी भी

बात बहुत पुरानी है ….. पर लिखना जरूरी है …..  तब हम रक्सौल में रहते थे ….. मेरे ससुर जी व्यापार मंडल के मैनेजर और मेरे बड़े भैया की सिंचाई विभाग में इंजीनियर की नौकरी वहाँ थी …… बड़े भैया के बॉस थे ; जिनके घर पहली संतान बेटी हुई , दादी और पिता का व्यवहार उस नन्हीं सी जान और उसकी माता के प्रति अच्छा नहीं था …… घर में ना पैसों की कमी थी ना लड़कियों की संख्या ज्यादा थी …….. सिंचाई विभाग में कार्य करने वालों के घर में नोटों का बिस्तर होता है …… बरसात के समय झांगा से बहार कर घर नोट लाते हैं लोग ….

~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ संजोग से उस समय मैं गर्भवती थी ; किसी ने मुझसे मजाक में कहा :-  सोच लीजिये , आपको जो लड़की हुई ………… मेरा जबाब था :- सोचे वो , जो गाय को शेरनी बनते नहीं देखें हैं …….

सब आवाक …… कहने वाले का मजाक ही था , क्योंकि हमारे घर में लड़का लड़की में कोई फर्क कभी नहीं रहा …. मेरी ननद को एक ही लड़की है और उनकी परवरिश किसी लड़के से कम नहीं हुई है ……

जिसने भी बिल्ली को जनते देखा है , उसके गुर्राने से वाकिफ  होंगे …….. अपने पर माँ आ जाये तो हर बाधा को दूर कर सकती है …….. कन्या भ्रूण में हत्या की पूरी जिम्मेदारी एक स्त्री की मैं मानती हूँ ……

__________ एक छत के लिए कितना सहती है स्त्री

जिस छत के नीचे मान सम्मान अधिकार सुरक्षित नहीं , किस काम की ऐसी छत

___________ छोड़ देना आसान नहीं तो नामुमकिन भी नहीं ऎसी छत

__________ गिरते बिलखते सम्भलते ऊंचाइयों को छूते देखी हूँ , बहुत सी स्त्रियों को ऐसी छत से विलग होकर ……

सभी कन्याओं को ढ़ेरों आआशीष के संग अशेष शुभकामनायें

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आस की प्यास

हौसले की थपकी

कहो माता मैं हूँ ना

सुरक्षित हो

पढ़ेगी भी बिटिया

उड़ेगी ही बेटियाँ

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सब मिल कहें न

हम हैं न

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ

6 thoughts on “कन्या पढ़ेगी भी , उड़ेगी भी

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूब !

  • वैभव दुबे "विशेष"

    उत्कृष्ट रचना आदरणीया
    सच हैं बेटियां घर की रौशनी होती है

    • विभा रानी श्रीवास्तव

      आभारी हूँ
      बहुत बहुत धन्यवाद भाई आपका

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहन जी , बहुत ही ऊंचे विचार हैं आप के . किओंकि आप खुद महला हैं और महला ही एक महला की दुश्मन है लिख कर ही इस बात को साबत कर दिया कि भ्रूण हत्या में महला ज़िआदा कसूरवार है . गाँव में रहते हुए मैंने यह देखा है लेकिन मैह्लाओं की इस सोच के पीछे हमारे समाज की घटीया सोच है और सब से बड़ा कोहड़ है दान दहेज़ का . जिस गरीब के घर चार लडकियन हों उस महला का किया हाल होगा ,कैसे वोह खुश रह सकेगी ,किओंकि समाज तो उन पर तरस नहीं करेगा ,वोह तो दहेज़ मांगेगा . हाँ जो पैसे में खेलता है अगर वोह भी ऐसी सोच रखे तो बहुत बुरी बात होगी .

    • विभा रानी श्रीवास्तव

      आभारी हूँ भाई
      आपके दिए मान की ऋणी
      दहेज कोढ़ है संघ का

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छा लिखा है, बहिन जी। यह एक कटु सत्य है कि महिला ही महिला की दुश्मन होती है। लेकिन अब धीरे धीरे वातावरण बदल रहा है।

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