गीत- पता नहीं चलता है
कैसे मेरी रातें कटतीं कैसे दिन ढलता है.
पहले उसे पता था अब क्यों पता नहीं चलता है.
जनम-जनम तक साथ निभाने
वाली कितनी बातें.
करते-करते साथ गुज़ारीं
हमने कितनी रातें.
क्या-क्या मेरे मन को भाता क्या मुझको खलता है.
पहले उसे पता था अब क्यों पता नहीं चलता है.
मेरे ग़म से उसकी आँखें
अक्सर नम हो जातीं.
मेरी ख़ुशियों से पीड़ायें
उसकी कम हो जातीं.
मुझको मिलतीं ख़ुशियाँ कैसे मेरा ग़म गलता है.
पहले उसे पता था अब क्यों पता नहीं चलता है.
वैसे तो दिल का रिश्ता है
पर दिल तब ही माने.
बिना कहे मैं उसकी सुन लूँ
मेरी वो सब जाने.
बिना नेह के तेल प्रेम का दीप कहाँ जलता है.
पहले उसे पता था अब क्यों पता नहीं चलता है.
— डाॅ. कमलेश द्विवेदी
मो.09415474674
सुंदर गीत
बहुत सुंदर और मधुर गीत !
बेहतरीन सृजन साहब