भारत को खोखला करता भ्रष्टाचार
भारत को खोखला करता भ्रष्टाचार
दीमक एक पेड़ को इतना खोखला नहीं करती, जितना की भ्रष्टाचार ने भारत को खोखला कर दिया है। भ्रष्टाचार का बीज भारत में राजाओं के ज़माने से ही था, लेकिन अंग्रेजो ने इस बीज को पानी देकर पौधा बना दिया। आजादी के बाद जिस पौधे को उखाड़ फैंक देना चाहिए था, उसको नेताओं ने पानी देकर विशाल वृक्ष बना दिया। अब इस वृक्ष की शाखाए इतनी फ़ैल चुकी है और जड़ इतनी मजबूत हो चुकी है कि भ्रष्टाचार ने भारत को पूरी तरह से अपने कब्ज़े में ले लिया है। आज भारत भ्रष्टाचार के मामले में 94 स्थान पर है और धीरे-धीरे आगे की और बढ़ता जा रहा है।
घूस, चुनाव में धांधली, पक्षपातपूर्ण निर्णय, टैक्स चोरी, झूठी गवाही, और परीक्षा में नक़ल करना भी भ्रष्टाचार के विभिन्न प्रकारों में से एक है। भ्रष्टाचार से ना सिर्फ देश की अर्थव्यवस्था बल्कि प्रत्येक व्यक्ति पर इसका प्रभाव पड़ता है। भारत में जहा राजनीती एवं नौकरशाही का भ्रष्टाचार बहुत व्यापक है तो दूसरी तरफ न्यायपालिका, मिडिया, पुलिस, सेना आदि में भी भ्रष्टाचार व्याप्त है। 21 दिसम्बर 1963 को राम मनोहर लोहिया ने संसद में कहा था की सिहासन और व्यापर के बीच संबंध में भारत जितना दूषित, भ्रष्ट, और, बेईमानी, हो गया है इतना इतिहास में कभी नहीं हुआ है। यह सच भी है, क्योंकि अब शायद ही ऐसी कोई जगह बची हो, जहा पर भ्रष्टाचार की पहुंच ना हो। हर साल कोई ना कोई स्कैम सामने आता है और सिर्फ बातें शुरू हो जाती है।
चारा घोटाला में 950 करोड़, शेयर बाजार घोटाले में 4 हजार करोड़, कॉमन वेल्थ गेम्स में 70 हज़ार करोड़ का घोटाला, 2G स्क्ट्रम में 1 लाख 67 हज़ार करोड़ का घोटाला, तो वही इस सब से परे कोयला खदान आवंटन घोटाले में सबसे ज्यादा 192 लाख करोड़ जैसे बड़े घोटाले इस देश में हर साल होते आये है। भारत कि कमजोरी जब नज़र आती है जब घोटाला सामने हो, मुज़रिम सामने हो लेकिन सजा नहीं हो पाती। भ्रष्टाचार का आचरण जो आर्थिक अपराध समझा जाता है अब तक उसका कोई अंत नज़र नही आ रहा है।
भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए शायद जनता कोई नया अन्ना ढूंढ रही है। लेकिन जब तक भारत की जनता यह नही समझेगी की भ्रष्टाचार से उसी को लड़ना होगा, तब तक भ्रष्टाचार का घुन भारत को एक विकशित देश नही बनने देगा। इस समाधान के अलावा सबसे अच्छा एवं सक्रिय समाधान यह है कि अगर राजा एवं प्रजा दोनों सचेत हो जाएँ तथा सच्चे सदाचार को अपना लें, तो भ्रष्टाचार का नामो निशान मिट जायेगा, यानि जनता एवं सरकार दोनों को जागृत होना पड़ेगा। ऐसा होना थोडा मुश्किल है लेकिन नामुमकिन नहीं।
— मनोज सिंह
बहुत ही अच्छा लेख.
वास्तव में लोगों को भ्रष्टाचार की
परिभाषा ही नहीं पता
लोग अपने मकसद को सफल
बनाने के लिए रिश्वत देते है
अगर कार्य पूरा हो गया तो
चुप…और नहीं हुआ तो बबाल..
ऐसे ही अन्याय सहना
जुर्म होते ही अपनी आँखे और
जुबान बन्द कर लेना
भी एक प्रकार का भ्रष्टाचार है
अर्थात जब लोग छोटे अपराधों पर
लगाम लगाएंगे तभी भ्रष्टाचार रुकेगा
अच्छा लेख। यही कटु सत्य है
आँखें खोल देने वाला लेख लेकिन भारत के लोग कभी नहीं सुधरेंगे . एक तो घुटाले इस परकार के हैं ,दुसरे संत बाबे और बड़े बड़े धर्म गुरु लोगों को दोनों हाथों से लूट रहे हैं . घर खाने को नहीं लेकिन बाबा जी को भोजन देना है और कुछ न कुछ भेंट भी देनी है , BHARAT IS A MENTALLY SICK NATION .
सही कहा भाईसाहब आपने।