कविता

टूटा हुआ दर्पण

एक टीस-सी
उभर आती है
जब अतीत की पगडंडियों
से गुजरते हुए —
यादों की राख़ कुरेदता हूँ।

तब अहसास होने लगता है
कितना स्वार्थी था मेरा अहम्?
जो साहित्यक लोक में खोया
न महसूस कर सका
तेरे हृदय की गहराई
तेरा वह मुझसे आंतरिक लगाव

मै तो मात्र तुम्हें
रचनाओं की प्रेयसी समझता रहा
परन्तु तुम किसी प्रकाशक की भांति
मुझ रचनाकार को पूर्णत: पाना चाहती थी
आह! कितना दु:खांत था
वह विदा पूर्व तुम्हारा रुदन
कैसे कह दी थी
तुमने अनकही सच्चाई
किन्तु व्यर्थ
सामाजिक रीतियों में लिपटी
तुम हो गई थी पराई

आज भी तेरी वही यादें
मेरे हृदय का प्रतिबिम्ब हैं
जिनके भीतर मै निरंतर
टूटी हुई रचनाओं के दर्पण जोड़ता हूँ।

महावीर उत्तरांचली

लघुकथाकार जन्म : २४ जुलाई १९७१, नई दिल्ली प्रकाशित कृतियाँ : (1.) आग का दरिया (ग़ज़ल संग्रह, २००९) अमृत प्रकाशन से। (2.) तीन पीढ़ियां : तीन कथाकार (कथा संग्रह में प्रेमचंद, मोहन राकेश और महावीर उत्तरांचली की ४ — ४ कहानियां; संपादक : सुरंजन, २००७) मगध प्रकाशन से। (3.) आग यह बदलाव की (ग़ज़ल संग्रह, २०१३) उत्तरांचली साहित्य संस्थान से। (4.) मन में नाचे मोर है (जनक छंद, २०१३) उत्तरांचली साहित्य संस्थान से। बी-४/७९, पर्यटन विहार, वसुंधरा एन्क्लेव, दिल्ली - ११००९६ चलभाष : ९८१८१५०५१६