गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

आप को रूह से चाहता कौन है
पूछते तब भी हो बावफा कौन है

इल्म की राह है मुश्किलों का सफर
बंदगी में खुदाया, मिटा कौन है ।

देख के गैर की महफ़िलो में तुझे
लोग हैं पूछते, बेवफा कौन है ।

मतलबी लोग है इस जहाँ के मगर
डूबती नाव पर, बैठता कौन है ।

लाल होता लहू हर किसी का खुदा
लोग मिलते नही, रोकता कौन है ।

याद है आज भी संगदिल वो सनम
चोट खा कर धरम, बोलता कौन है ।

धर्म पाण्डेय

 

One thought on “ग़ज़ल

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी गजल !

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