कवितापद्य साहित्य

जिन्दगी और रेलगाड़ी !

जिन्दगी और

रेलगाड़ी…

दोनों एक जैसी हैं |

कभी तेज तो कभी

धीमी गति से

लेकिन चलती है |

पैसेंजर ट्रेन…

स्टेशन पर रुक जाती है

और देर तक रुकी रहती है |

जिन्दगी के कुछ लम्हे

ऐसे भी होते है

जिसमे आकर

जिन्दगी रुक जाती है |

लाख कोशिश करे

जिन्दगी आगे नहीं बढती

लगता है तब

आखरी स्टेशन आ गया है |

जिन्दगी में न जाने

कितनों से मिले,

किन्तु कुछ ही की यादें

यादों में बस गए,

कुछ की यादें

पैसेंजर की भांति

यादों से उतर गए |

रेलगाड़ी और जिन्दगी में

एक ही अंतर है,

गाड़ी आखरी स्टेशन से

लौटकर पहले के

स्टेशन में आ जाती है,

किन्तु जिन्दगी की गाडी

लौटकर कभी भी

बचपन में नहीं आती है |

© कालीपद ‘प्रसाद’

*कालीपद प्रसाद

जन्म ८ जुलाई १९४७ ,स्थान खुलना शिक्षा:– स्कूल :शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय ,धर्मजयगड ,जिला रायगढ़, (छ .गढ़) l कालेज :(स्नातक ) –क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान,भोपाल ,( म,प्र.) एम .एस .सी (गणित )– जबलपुर विश्वविद्यालय,( म,प्र.) एम ए (अर्थ शास्त्र ) – गडवाल विश्वविद्यालय .श्रीनगर (उ.खण्ड) कार्यक्षेत्र - राष्ट्रीय भारतीय सैन्य कालेज ( आर .आई .एम ,सी ) देहरादून में अध्यापन | तत पश्चात केन्द्रीय विद्यालय संगठन में प्राचार्य के रूप में 18 वर्ष तक सेवारत रहा | प्राचार्य के रूप में सेवानिवृत्त हुआ | रचनात्मक कार्य : शैक्षणिक लेख केंद्रीय विद्यालय संगठन के पत्रिका में प्रकाशित हुए | २. “ Value Based Education” नाम से पुस्तक २००० में प्रकाशित हुई | कविता संग्रह का प्रथम संस्करण “काव्य सौरभ“ दिसम्बर २०१४ में प्रकाशित हुआ l "अँधेरे से उजाले की ओर " २०१६ प्रकाशित हुआ है | एक और कविता संग्रह ,एक उपन्यास प्रकाशन के लिए तैयार है !

4 thoughts on “जिन्दगी और रेलगाड़ी !

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    बेजोड़ तुलना
    उम्दा रचना

    • कालीपद प्रसाद

      धन्यवाद आ विभारानी जी !

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    कालीपद परसाद जी ,कवित बहुत अच्छी लगी ,यह जिंदगी की कडवी सच्चाई है कि जिंदगी की गाडी पहले की जगह नहीं आती .

    • कालीपद प्रसाद

      धन्यवाद आ गुरमेल सिंह भम्ररा जी !

Comments are closed.