चेहरे पे बारिश की बूंदें …
चेहरे पे बारिश की बूंदें यूं ढलके, जैसे की शबनम की बूंदे गुलों पर।
होठों पे यूं कर रही है शरारत, किरणें जो पहली गिरे कोपलों पर॥
भीगा सा आंचल यूं लिपटा बदन से, जैसे लता कोई बल खा के झूमे।
बल खा के इतरा के झूमें है झुमके, मदहोशियों में कपोलों को चूमें॥
यूं लट उलझती है, नागिन सी लगती है लहराती बल खाती कोमल लबों पर….
गिरकर बदन पर,जलती हैं बूंदे कैसी तपिश है ये कैसी अग्न है।
तेरी जवानी जलाती है जल भी, फिर भी मिलन कि सभी को लगन है॥
प्यासा खुद सावन हैं, आशा हर एक मन है
अभिलाषा उडने लगी बादलों पर…..
चेहरे पे बारिश की बूंदें यूं ढलके, जैसे की शबनम की बूंदे गुलों पर…
है इतनी गुजारिश, रुकना मत ऐ बारिश
कुछ और जलने दो, अरमां मचलने दो।
चल जो रहा है ये पल यूं ही चलने दो
इस तन की ज्वाला से, पानी को जलने दो।
अरमां पिघलने दो, चाहत में जलने दो, हर ख्वाब पलने दो, हुस्न के शोलों पर…
चेहरे पे बारिश की बूंदें यूं ढलके, जैसे की शबनम की बूंदे गुलों पर…
सतीश बंसल
बढिया रचना !