आत्मकथा

आत्मकथा : एक नज़र पीछे की ओर (कड़ी 51)

परिवार का लखनऊ आगमन

मार्च 2011 के तीसरे सप्ताह में मैं पंचकूला पहुँच गया। श्रीमती जी ने एक पैकर्स एंड मूवर्स से पहले ही बात की हुई थी। उसी से हमने सामान पैक कराया और सामान भेजकर रात की गाड़ी से चलकर अगले ही दिन लखनऊ पहुँच गये। दोपहर बाद तक हमारा सामान भी आ गया।
जब श्रीमती जी लखनऊ आ गयीं, तो उन्हें किराये का मकान देखकर सन्तोष हुआ। हालांकि इसमें कुछ कमियाँ भी थीं, लेकिन सुविधाओं की तुलना में कमियाँ लगभग नगण्य थीं। सबसे बड़ी सुविधा यह थी कि मकान बहुत ही सुरक्षित था और हम उसकी सुरक्षा की अधिक चिन्ता किये बिना ताला लगाकर कहीं भी आ-जा सकते थे। गाड़ी रखने की भी पर्याप्त जगह थी। शीघ्र ही हमने अपना सामान व्यवस्थित कर लिया। सबसे अधिक कठिनाई मुझे अपनी किताबों के कार्टून रखने में हुई। मेरे पास हजारों की संख्या में किताबें हैं, जो 10-12 कार्टूनों में पैक की गयी थीं। उनके लिए वहाँ पर्याप्त अलमारी नहीं थीं। किसी तरह मैंने उनको एक कमरे में दुछत्ती पर रखवाया। अपना स्थायी निवास न होने के कारण मुझे यह कष्ट हर बार ट्रांसफर होने पर झेलना पड़ता है। अपनी आवश्यकता की कोई किताब खोजने में भी बहुत मुश्किल होती है।

प्रियांशु की रक्षा

बाल निकेतन में जो बच्चे रहते हैं, उनमें एक का नाम है प्रियांशु सिंह। वह उस समय कक्षा 7 में पढ़ता था। वह पढ़ाई में अपनी कक्षा में प्रथम रहता था तथा अन्य विविध गतिविधियों में भी भाग लेता था। वहीं पढ़ाई के समय उसकी मित्रता अपने ही विद्यालय में एक कक्षा नीचे पढ़ने वाली एक लड़की से हो गयी। यह मित्रता से भी आगे बढ़कर प्रेम में परिवर्तित हो गयी। दोनों खाली समय में किसी कोने में गुफ्तगू किया करते थे। एक दिन एक अध्यापक ने उनको एक खाली कमरे में गुफ्तगू करते देख लिया। उसने लड़की की शिकायत तो उसके बाप से कर दी और प्रियांशु को खूब पीटा। बाद में उसकी भी शिकायत विद्यालय के प्रमुख श्री आर.एन. वर्मा जी और बाल निकेतन के प्रमुख श्री मेहरोत्रा जी से कर दी। इस पर विद्यालय की प्रबंध समिति ने उसको विद्यालय से निकालने का निर्णय किया और कह दिया कि इन परीक्षाओं के बाद स्कूल से उसका नाम काट दिया जाएगा।

जब मुझे इस निर्णय का पता चला, तो मुझे लगा कि उसने जो गलती की है, उसकी तुलना में सजा बहुत अधिक दी जा रही है। पहले मैंने प्रियांशु को भी अकेले में बात करके बहुत समझाया और कहा कि प्रेम करना गलत नहीं है, लेकिन उसका प्रकट हो जाना गलत है। इससे छवि खराब होती है और जिन्दगी भी खराब हो सकती है। इसलिए अभी अपना ध्यान केवल पढ़ाई पर लगाओ। उसने यह स्वीकार किया और मुझे वचन दिया कि आगे से ऐसी गलती नहीं करूँगा। तब मैंने उसे आश्वासन दिया कि मैं तुम्हें बचा लूँगा, लेकिन अपनी ओर से कोई ऐसा काम मत करना कि मुझे नीचा देखना पड़े।

तब मैंने प्रियांशु को स्कूल से निकालने के निर्णय का विरोध किया और वर्मा जी तथा प्रभु जी से निवेदन किया कि इस मामले पर फिर से विचार किया जाए। मैंने उनसे कहा कि प्रियांशु अपनी कक्षा में प्रथम रहने वाला लड़का है। इस उम्र में ऐसी गलती हो जाती है। पर उसे जो सजा दी जा रही है वह बहुत ज्यादा है। मैंने यह भी कहा कि मैंने उसे समझा दिया है और आगे से वह ऐसी गलती नहीं करेगा, इसकी गारंटी मैं अपने ऊपर लेता हूँ। लगभग यही बातें मैंने मिशन के कुछ अन्य प्रमुख कार्यकर्ताओं सर्वश्री गोविन्द जी, विष्णु जी, विजय प्रताप जी, भाटे जी आदि से भी कहीं और उनका समर्थन चाहा। सौभाग्य से वे मेरी बात मान गये। उन्होंने वर्मा जी से निवेदन किया कि इस मामले पर फिर से विचार किया जाए। अन्ततः प्रियांशु को स्कूल से निकालने का निर्णय उसे चेतावनी देकर रद्द कर दिया गया। मुझे यह लिखते हुए बहुत प्रसन्नता और सन्तोष है कि प्रियांशु ने अपने वचन का पूरी तरह पालन किया है और अभी तक ऐसी कोई हरकत नहीं की है कि मुझे सिर नीचा करना पड़े। हमेशा की तरह वह कक्षा 8 में भी अपनी कक्षा में प्रथम रहा और ये पंक्तियाँ लिखे जाते समय कक्षा 12 में पढ़ रहा है।

बालनिकेतन के बच्चों की पढ़ाई

मैं पहले लिख चुका हूँ कि बालनिकेतन के अधिकांश बच्चे हमारे जिस महामना मालवीय विद्या मन्दिर में पढ़ रहे हैं उसमें गणित और विज्ञान की पढ़ाई की व्यवस्था अच्छी नहीं है। इन विषयों के अध्यापक पर्याप्त योग्य नहीं हैं और न लग्न के साथ उनको पढ़ाते हैं। फरवरी-मार्च 2011 में लगभग एक माह तक लगातार मेरे द्वारा पढ़ाये जाने पर सभी बच्चे गणित और विज्ञान में पर्याप्त अंक लेकर उत्तीर्ण तो हो गये, परन्तु उनके अंक उतने अच्छे नहीं थे जितने होने चाहिए थे। मेरा मानना है कि गणित में अच्छे रहने वाले विद्यार्थी अन्य सभी विषयों में भी अच्छे रहते हैं। इसलिए मैंने यह तय किया कि अब लगभग रोज ही बच्चों को गणित और विज्ञान पढ़ाया करूँगा।

सौभाग्य से मैं बाल निकेतन के बहुत निकट रहता था, इसलिए मैंने यह नियम बनाया कि अपने कार्यालय से छः बजे लौटने के बाद थोड़ा जलपान करके साढ़े छः बजे बाल निकेतन चला जाया करूँगा और वहाँ साढ़े सात या पौने आठ बजे तक उनको पढ़ाया करूँगा। मैंने ऐसा ही किया और पूरे वर्ष भर लगभग 7-8 बच्चों को एक साथ कभी गणित, तो कभी विज्ञान पढ़ाने लगा।

गणित की नियमित पढ़ाई का बच्चों को बहुत लाभ हुआ। जो बच्चे पहले गणित के सवाल को देखकर ही घबरा जाते थे अब स्वयं सोचकर उसे करने लगे। मैं केवल तभी उनकी सहायता करता था, जब वे किसी सवाल पर अटक जाते थे। इस तरह करते हुए वे सभी गणित में बहुत तेज हो गये और मार्च 2012 में जो परीक्षाएँ हुईं उनमें उन सभी के गणित में बहुत अच्छे अंक आये। मैंने अपना यह कार्यक्रम लगातार जारी रखा, यहाँ तक कि छुट्टियों के दिनों में भी। केवल जून में जब बच्चे अपने-अपने घर गये थे, यह कार्य बन्द रहा।

शोभित राजपूत की पढ़ाई

बालनिकेतन में रहने वाले एक बच्चे का नाम शोभित राजपूत है। वह एक अच्छा छात्र है और अच्छा स्वयंसेवक भी है। नाटकों, खेलकूद आदि में भी भाग लेता है। लेकिन गणित में बहुत कमजोर था। पहली साल जब मैं सबको पढ़ाता था, तो वह न जाने क्यों मेरे बुलाने पर भी नहीं आता था और टाल जाता था। फरवरी-मार्च 2011 में जब मैं सबको लगभग रोज ही पढ़ाता था, तब मैंने उसे भी बैठाया और तभी मुझे पहली बार पता चला कि कक्षा 8 में पढ़ने वाला शोभित तो गणित में इतना कमजोर है कि कक्षा 6 का गणित भी नहीं जानता।

तब मैंने तय किया कि अगले साल इसे कक्षा 6, 7 और 8 का गणित क्रमशः पढ़ाना है और तब कक्षा 9 का गणित शुरू करना है। यह तय करके मैंने उससे कहा कि कहीं से कक्षा 6 और 7 की गणित की पुस्तकों का प्रबंध कर लो। उसने वैसा ही किया। फिर मैंने उसे कक्षा 6 का गणित पढ़ाना शुरू किया। वह वास्तव में बहुत कमजोर था। गणित की मौलिक बातें भी वह नहीं जानता था। धीरे-धीरे उसके दिमाग में गणित आने लगा। लगभग डेढ़ माह में उसने कक्षा 6 की अंकगणित और बीजगणित की किताबें पूरी कर डालीं और उनमें पारंगत हो गया।
फिर मैंने उसे कक्षा 7 का गणित पढ़ाना शुरू किया। लगभग 2 माह में उसने कक्षा 7 की भी अंकगणित और बीजगणित की पुस्तकें समाप्त कर लीं। तब तक वह गणित में इतना तेज हो गया था कि कई सवालों को केवल सोचकर ही हल कर देता था।

फिर मैंने उसे कक्षा 8 का गणित पढ़ाना शुरू किया। इन दिनों मैंने अपना घर बदल दिया था। मुझे बैंक का फ्लैट मिल गया था, जो मेरे कार्यालय के पास था। वह बाल निकेतन से बहुत दूर था, इसलिए रोज आने में बहुत कठिनाई होती थी। अतः मैंने यह नियम बनाया कि हर शनिवार और रविवार को सायंकाल 3 से 5 बजे तक बच्चों को मुख्य रूप से गणित और आवश्यकता होने पर विज्ञान भी पढ़ाया करूँगा। इससे बच्चों को समय पर्याप्त मिल जाता था। परन्तु शोभित इतना धीमा था कि कक्षा 8 का गणित पूरा करते-करते उसने पूरा साल निकाल दिया और कक्षा 9 का गणित कम पढ़ा पाया। फिर भी वह कक्षा 9 की परीक्षा में गणित में 100 में से 47 अंक लाने में सफल रहा। कक्षा 10 की बोर्ड की परीक्षा में भी वह पर्याप्त अंक लेकर प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हो गया. आजकल वह 12 में पढ़ रहा है.

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: [email protected], प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- [email protected], [email protected]

6 thoughts on “आत्मकथा : एक नज़र पीछे की ओर (कड़ी 51)

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    विजय भाई , आप की सेवा जो बच्चों के प्रती है , मुझे बहुत अच्छी लगी ,मेरा मानना है कि जो बच्चे भी आप से पड़े और पड़ रहे हैं वोह सारी जिंदगी आप को भूलेंगे नहीं ,यही बात मुझे अभी तक् अपने अछे अधिआप्कों को भूलने नहीं देती . आज की किश्त बहुत अच्छी लगी .

    • विजय कुमार सिंघल

      बहुत बहुत धन्यवाद, भाई साहब !

  • मनमोहन कुमार आर्य

    नमस्ते श्री विजय जी। आज की किश्त में श्री प्रियांशु,श्री शोभित व अन्यों के प्रति आपने जो विद्यादान व सहयोग किया वह पढ़कर आपके परोपकारमय जीवन से अभिभूत हो गया। ईश्वर आपकी इस भावना को बनाये रक्खें। हार्दिक शुभकामनायें एवं धन्यवाद।

    • विजय कुमार सिंघल

      प्रणाम, मान्यवर ! आपके उद्गारों के लिए आभारी हूँ।

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    बच्चों को उचित मार्गदर्शन, आपका देना पढ़ कर अच्छा लगा

    • विजय कुमार सिंघल

      बहुत बहुत धन्यवाद, बहिन जी !

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