कविता

महिला सरपंच

पद शोहर के पास गिरवी धरा

राजनिती के गलियारो में
घूंघट ओढे खड़ी महिला सरपंच हूँ – मैं !
क्या हुआ आरछण मुझे मिला
वोटो के भंवर में बस शतरंज

का एक मोहरा हूँ – मैं !
मेरा सशक्तिकरण कुछ नही

क्या फैसले ले रहा मेरे हक के

इससे अंजान हूँ – मैं !
क्या बदलाव चाहती समाज में

कोई सरोकार नहीं आवाज उठाऊ

तो कुलीन कहलाऊ – मैं !
कैसा भावनात्मक खिलवाड़

मेरा राजनीति की रानी सिपाहियो

से घिरी खड़ी – मैं !

— गीता यादव

गीता यादव

, निवासी दिल्ली

One thought on “महिला सरपंच

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    कड़वी सच्चाई
    ऐसी ही महिला सरपंच को मैं भी जानती हूँ

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