गीत/नवगीत

वाह शिवसेना के गीदड़

(जैन धर्म के पुण्य पर्व पर लगाये मांस के प्रतिबन्ध के विरोध में शिवसेना की धमकी पर आपत्ति जताती मेरी नई कविता)

वाह ठाकरे बन्धु,आपने बहुत बहादुर काम किया,
धर्म सनातन की शुचिता को पल भर में बदनाम किया,

हिन्दू शब्द नही हठ धर्मी,सदियों से उपकारी है,
सर्व धर्म का शुभचिंतक है, कभी नही व्यभिचारी है,

जैन, जिन्होंने कभी नही भारत का दामन छोड़ा है,
जैन, जिन्होंने सदा ॐ को अंताणंम से जोड़ा है,

अलग अलग हो व्यंजन लेकिन एक हमारी थाली है,
जैन धर्म को आँख दिखाना तीन देव को गाली है,

धर्म सनातन के जो प्यारे नैन दिखाई देते है,
अलग हिन्दुओं से क्यों तुमको जैन दिखाई देते है,

नही किसी सुल्तान के वंशज, ना वजीर के बेटे है,
भरत भूमि में पले बढे ये महावीर के बेटे हैं

सदा जिन्होंने दीवाली पर संग संग दीप जलाए हैं,
लक्ष्मी संग गणेश पूजे है, जो शुभ-लाभ लिखाए हैं,

पहनावे से खान पान तक भारत प्रेम समाया है,
जिनके चाल चलन ने कोई भेद नहीं दिखलाया है,

उन्ही जैनियों को तुमने क्यों नफरत से धमकाया है,
और मांस के टुकड़ों पर कैसा शिव धर्म निभाया है,

पुण्य पर्व पर जैन धर्म का संबल अगर बढ़ाते तुम,
चार दिनों तक मांस न खाते, भूखों ना मर जाते तुम

हिम्मत हो तो ज़रा निकल कर घर से बाहर आओ तो,
जुम्मे की नमाज़ पर लगते भीषण जाम हटाओ तो

शिव सेना के शेर अगर हो साहस जरा दिखाओ तो,
अमर नाथ को गाली देने वालों से टकराओ तो

हर हर महादेव जयकारा बोलो आज भवानी का,
हिम्मत हो तो शीश काट दो मसरत और गिलानी का

संख्या अल्प जैनियों की है, उन पर धौंस जमाते हो,
घर में ही दीवार उठाकर देशभक्त कहलाते हो

देवपुत्र क्यों बोल रहे है आज दानवी बोली में,
भस्मासुर कैसे घुस आये शिव शंकर की टोली में,

—–कवि गौरव चौहान