कविता

बोलो मंगल कैसे गाऊं…

रोती है दिनरात जहां मानवता, कैसे खुशी मनाऊं।
हर आंगन गम के आंसू है, बोलो मंगल कैसे गाऊं॥

सिसकी की आवाजें सुनता हूं, मासूम फरिश्तों की।
तुम्ही बताओ इस पीडा को सहकर मैं कैसे मुस्काऊं॥
हर आंगन गम के आंसू है, बोलो मंगल कैसे गाऊं……

नोच रहें है कलियों को, खिलने से पहले ही सैयाद।
तुम्ही बताऔ कैसे गुलशन में, खुशियों के फूल खिलाऊं॥
हर आंगन गम के आंसू है, बोलो मंगल कैसे गाऊं….

दर दर गलियों में ठोकर, खातें है जीवन देने वाले।
तुम्ही बताऔ पिण्ड दान को, कैसे मुक्ति मार्ग बताऊं॥
हर आंगन गम के आंसू है, बोलो मंगल कैसे गाऊं….

पी लेती है जहर जिन्दगी के, चुपचाप लबों को सिल कर।
मर्यादा की खातिर घुटती, श्रृष्ठा को कैसे समझाऊं॥
हर आंगन गम के आंसू है, बोलो मंगल कैसे गाऊं….

जिस मां की छाती पर रोज, लहु के छींटे पडतें हो।
उस मां के चेहरे पर बोलों, सुख के भाव कहां से लाऊं॥
हर आंगन गम के आंसू है, बोलो मंगल कैसे गाऊं….

सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.

2 thoughts on “बोलो मंगल कैसे गाऊं…

  • वैभव दुबे "विशेष"

    वास्तव में सतीश जी मैं आपसे अत्यधिक
    प्रभावित हूँ..
    जिस मां की छाती पर रोज, लहु के छींटे पडतें हो।
    उस मां के चेहरे पर बोलों, सुख के भाव कहां से लाऊं॥
    हर आंगन गम के आंसू है, बोलो मंगल कैसे गाऊं….

    हृदय स्पर्शी रचना

    • सतीश बंसल

      बहुत आभार वैभव जी…
      मन के उदगार है
      व्यक्त कर लेता हूं…

Comments are closed.