सिले से लब…
ये अपलक देखती आंखे
शून्य मे निहारती नजर
चेहरे पर मायूसी
सिले से लब
बहुत कुछ कहतें है
सब के सब…
बिखरे से बाल
बेतरतीब साडी
सहमा सा व्यवहार
हौसलों से हार
ये दीवानगी से सबब
बहुत कुछ कहतें है
सब के सब…
अतीत के पन्नों में
ढूंढती है उल्लास
सिंहरन देता है
सच्चाई का अहसास
आभास मर गया
जाने कब…
बहुत कुछ कहतें है
सब के सब…
जानता हूं
एक दिन
बंद हो जायेगीं ये आंखे
यूं ही खामोशी सें
समेटे हुऐ, तमाम हसरतें
लिये हुए
जीवन भर के अनुत्तरित सवाल
या रब
औरत की ये हालत क्यूं
वही मंजर
हर जगहा
जहां जब देखो तब…
चेहरे पर मायूसी
सिले से लब
बहुत कुछ कहतें है
सब के सब…
सतीश बंसल