कविता

सिले से लब…

ये अपलक देखती आंखे
शून्य मे निहारती नजर
चेहरे पर मायूसी
सिले से लब
बहुत कुछ कहतें है
सब के सब…

बिखरे से बाल
बेतरतीब साडी
सहमा सा व्यवहार
हौसलों से हार
ये दीवानगी से सबब
बहुत कुछ कहतें है
सब के सब…

अतीत के पन्नों में
ढूंढती है उल्लास
सिंहरन देता है
सच्चाई का अहसास
आभास मर गया
जाने कब…
बहुत कुछ कहतें है
सब के सब…

जानता हूं
एक दिन
बंद हो जायेगीं ये आंखे
यूं ही खामोशी सें
समेटे हुऐ, तमाम हसरतें
लिये हुए
जीवन भर के अनुत्तरित सवाल
या रब
औरत की ये हालत क्यूं
वही मंजर
हर जगहा
जहां जब देखो तब…
चेहरे पर मायूसी
सिले से लब
बहुत कुछ कहतें है
सब के सब…

सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.