कहानी

पश्चाताप असम्भव है

(पिछले दिनों व्यस्तता के चलते आप लोगों के बीच नहीं आ पाया. दिनांक 11 सितम्बर 2015 को दैनिक जागरण झाँसी समाचार पत्र में प्रकाशित मेरी कहानी…अवश्य पढ़ें समाचार पत्र की प्रति सलंग्न कर रहा हूँ.)IMG-20150911-WA0009

आज माँ की कोख में आकर बहुत खुश हूँ। नई दुनिया में आने को आतुर। कब नौ माह पूरे होंगे? माँ की आँखों से देखा मैंने सब कितने
खुश हैं पिताजी तो माँ को गोद में उठाकर नाचने लगे दादी माँ चिल्लाई, “अरे नालायक बहू पेट से है नाती आने वाला है, उतार उसे मेरे नाती को चोट लग जायेगी”। पिताजी ने माँ को उतारा और दौड़ कर दादी माँ को गोद में उठा लिया सब जोर-जोर से हँसने लगे और मैं भी।

दादी माँ ने माँ के सिर पर हाथ फेरकर कहा, “बेटा तुम मेरी बहू नहीं बेटी हो। अब तुम अधिक वजन नहीं उठाना, सब काम मैं देख लूँगी बस तुम अपने खाने पीने का ख्याल रखो। तभी तो फूल जैसा नाती मुझे दोगी” ऐसा कह कर दादी माँ ने माँ को गले से लगा लिया। मैंने भी दादी माँ
को इतना पास पाकर एक तरंग महसूस की। मेरे मचलने को माँ ने महसूस किया और ममत्व से मुस्कुरा दी।

कुछ दिन बाद दादी माँ के साथ कोई बुजुर्ग महिला आई ।वह माँ के पेट की तरफ बैठी और उनके पेट को छूकर देखा। उसके चेहरे के रंग ही बदलते चले गए। दादी माँ से बोली- ‘मेरा अनुभव कहता है यह लड़का नहीं, कलमुँही लड़की है।’

दादी माँ को तो जैसे सांप सूंघ गया। चेहरा क्रोध से तमतमा उठा। माँ से बोलीं- ‘उठ करमजली बैठी-बैठी मेरी छाती पर मूंग दलेगी क्या? घर के बहुत काम बाकी हैं। कपड़े धुलना है, खाना बनाना है और पानी भी भरना है। ’माँ को लगभग धक्का लगाते हुए बोलीं। मुझे बहुत डर लग रहा था।

शाम को दादी माँ ने पापा को सारी बात बताई।पापा ने माँ को हिकारत भरी नज़र से देखा और दादी माँ के कान में धीरे -से कुछ कहा। घर में मातम सा छा गया। माँ के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। पेट को वो प्यार से सहला रहीं थीं। मेरा भी मन जोर-जोर से रोने को कर रहा ।

अगली सुबह पापा ऑफिस नहीं गए। घर के बाहर एक ऑटो आकर रुक गया। पापा ने माँ का हाथ पकड़ा और लगभग खींचते हुए ऑटो में बिठा दिया। ऑटो जहाँ रुका एक बड़ा-सा अस्पताल था। पापा ने माँ से कहा, ”मैंने डॉक्टर साहब से बात कर ली है। कुछ ही देर में तुम्हारा गर्भपात हो जाएगा। बस फिर सब पहले जैसा हो जाएगा।यह तो कहो कि यहाँ मेरा दोस्त वार्डबॉय है, तो उसने डॉक्टर से कुछ ले दे कर बात पक्की कर ली। नहीं तो बाहर बोर्ड पर साफ लिखा है। यहाँ प्रसव से पूर्व लिंग परीक्षण नहीं होता है और भ्रूण हत्या कराना कानूनन अपराध है।चलो, इस बोझ को अब जल्दी हटा दो”।

माँ लगभग चिल्लाई,” नहीं …यह बोझ नहीं है,यह लड़की ही सही मगर है तो हमारा ही खून। दया करो मत गिराओ इस नन्ही सी जान को। …और उस अनपढ़ दाई की बातों में आकर गलत कदम मत उठाओ। एक बार डॉक्टर से चेक तो करा लो कि लड़का है या लड़की?’

पापा ने एक न सुनी। माँ को ऑपरेशन थियेटर में भेज दिया गया। मैंने पापा को आवाज़ दी- ‘पापा मुझे मत मारो। क्या फर्क पड़ता है कि मैं लड़का हूँ या लड़की? हूँ तो तुम्हारा ही अंश!’ मगर मेरी आवाज़ भला कौन सुनता।

डॉक्टर ने जैसे ही अल्ट्रासाउंड मशीन में मुझे देखा’ वो चौंक गया -‘अरे यह तो लड़का है ।लगता है कि कोई गलतफहमी हुई है।मैं अभी इसके पति को सच बताता हूँ लेकिन नहीं…अगर बता दिया, तो लिए गए बीस हजार रूपये भी लौटाने पड़ेंगे। नहीं, मैं कुछ नही बताउंगा। मुझे जिस काम करने के लिए पैसे मिले हैं, मैं करूँगा।’ ऐसा बड़बड़ाते हुए उसने औजार उठाये। औजारो की आवाज ने मुझे अंदर तक कंपा दिया।

उसने जैसे ही मुझे बाहर निकालना चाहा तेजधार औजार से मेरा एक पैर कट के बाहर आ गया मेरी माँ की कोख खून से लथपथ हो गई। मैं भयभीत हो कर और सिमट गया शायद बच जाऊँ, मगर फिर एक चोट में मेरा एक नन्हा सा हाथ कट के बाहर आ गया। मैं दर्द से कराह उठा।

मेरी सांसे साथ छोड़ रहीं थीं और अंत में उस डॉक्टर रूपी राक्षस ने मेरे छोटे छोटे टुकड़े बाहर निकाल दिये।मेरे अर्धविकसित शरीर से आत्मा बाहर निकल गई। मेरी आत्मा माँ को निहार रही थी, उसके दर्द को महसूस कर रही थी।कुछ देर में माँ को होश आ गया । पापा भी अंदर आ गए। दादी माँ भी अस्पताल आ गईं थी।

यह सब पापा के दोस्त ने देख लिया था उसने पापा को सब कुछ बता दिया। पापा और दादी माँ रो रहे थे। दादी माँ तो बेहोश ही हो गईं थीं। पापा ने डॉक्टर के गाल पर जोर से एक तमाचा मारा और चिल्लाये- ‘तुमने पैसे के लिए मेरे बेटे को मार दिया। तुम बहुत निर्दयी और गिरे हुए इंसान हो।’

तभी माँ कराहती हुई बोलीं- ‘गिरा हुआ डॉक्टर है ?और तुम लोग क्या हो? घटिया सोच वाले वहशी जानवर जिन्हें सिर्फ लड़का चाहिए। क्या लड़की का कोई अस्तित्व नहीं ? मैं भी तो एक लड़की थी। तुम्हारी माँ भी तो लड़की थी, अगर उनके पिता ने भी उन्हें मार दिया होता , तो आज तुम नहीं होते। घिन आती है मुझे तुम लोगों से।’

पापा, दादी माँ और डॉक्टर सिर झुकाये खड़े थे और मैं उनकी मूर्खता पर हँस रहा था। माँ के चरण छूने का असफल प्रयास कर मैं चल पड़ा ऐसी
कोख की तलाश में जहाँ लड़के और लड़की में कोई फर्क न हो।

वैभव दुबे ”विशेष”

 

वैभव दुबे "विशेष"

मैं वैभव दुबे 'विशेष' कवितायेँ व कहानी लिखता हूँ मैं बी.एच.ई.एल. झाँसी में कार्यरत हूँ मैं झाँसी, बबीना में अनेक संगोष्ठी व सम्मेलन में अपना काव्य पाठ करता रहता हूँ।

3 thoughts on “पश्चाताप असम्भव है

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी कहानी। पर वेबसाइट पर इसकी कतरन नहीं टैक्स्ट लगाओ। तभी पत्रिका में छप सकेगी।

    • वैभव दुबे "विशेष"

      सर जी आपकी आज्ञा के अनुसार मैंने कहानी टेक्स्ट में अपलोड कर दी है..कृपया देख लें धन्यवाद

    • वैभव दुबे "विशेष"

      धन्यवाद सर जी
      यही विचार है कि अगर इस कहानी को पढ़ कर
      एक भी शख्स का विचार बदलता है तो कहानी लिखना
      सार्थक हो जायेगा

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