फाईल
सरकारी दफ्तर की दबी
फाईल हूँ – मैं !
चूहे दीमक मेरे घर जमाई
दोषियो का आक्सिजन पीडितो
का इंतजार हूँ – मैं !
कोल ब्लाक व्यापम घोटाला
या कोई और रेंक में बस आराम
फरमाती हूँ – मैं !
खन्जर खून से सने हो चाहे
दोषियो के हाथ लाल रंग समझ
मुस्कुराती हूँ – मैं !
भूले बिसरे उठा भी ले कोई धूल
झाड़ भी दे मेरी बड़ी बेसकून
सी हो जाती हूँ – मैं !
नये -२ जुगाड़ खोजती दीमक
चूहो के पास जाने के सिस्टम
का काला चेहरा हूँ -मैं !
— गीता यादव
बहुत अच्छी कविता !
अच्छी रचना