आत्मकथा : एक नज़र पीछे की ओर (कड़ी 53)
अपनी दक्षिण भारत की यात्रा में पहले हम लखनऊ से दिल्ली गये, फिर वहाँ से मद्रास। मद्रास में हमें एक होटल में एक रात रुकना था और अगली सुबह ही लक्षद्वीप के अगत्ती कस्बे की उड़ान पकड़नी थी। यह उड़ान इंडियन एयरलाइंस की थी। जब हम अगली सुबह मद्रास हवाई अड्डे पहुँचे, तो पता चला कि अगत्ती की उड़ान रद्द हो गयी है। हम बहुत चिंतित हुए, लेकिन एयर इंडिया के एक अधिकारी ने हमारी बहुत सहायता की। उन्होंने कहा कि आज आप कोच्चि चले जाइए, वहाँ से कल सुबह अगत्ती के लिए उड़ान है। उन्होंने टिकट भी बुक करा दी। उनको धन्यवाद देकर हम कोच्चि की उड़ान में बैठ गये और कोच्चि पहुँच गये। हमने अपने ट्रैवल एजेंट को फोन करके वहाँ होटल बुक करा दिया था।
हमें कोच्चि शहर बहुत अच्छा लगा। वहाँ हमें जो होटल मिला था, वह भी उत्तम था। हम चार वयस्क लोग थे, इसलिए हमें दो कमरे मिलने थे। हमें कमरे ऐसे दिये गये जो पास पास थे और उनके बीच में एक बैठक थी। दोनों कमरों में बाथरूम, ड्रेसिंग रूम, अलमारी और टीवी की भी सुविधा दी। बीच के ड्राॅइंग रूम में डाइनिंग टेबल, सोफा, और टीवी भी था। यानी दोनों कमरों को और बैठक को मिलाकर एक अच्छा खासा आरामदायक घर सा बन गया था, जिसमें केवल रसोईघर नहीं था।
उस होटल का खाना भी बहुत शानदार होता था। उस दिन हम कहीं घूमने नहीं जा सके, क्योंकि बारिश हो रही थी। आगे भी बारिश की संभावना को देखते हुए हमने वहां से दो छाते खरीद लिये, क्योंकि हम एक भी छाता नहीं ले गये थे।
कोच्चि से हमें अगले दिन अगत्ती की उड़ान आसानी से मिल गयी। वह एक छोटा सा हवाई जहाज था, जिसमें लगभग 50 यात्री थे। सारी सीटें भरी हुई थीं। केवल एक एयरहोस्टेस सबका ध्यान रख रही थी। लगभग 40 मिनट की उड़ान के बाद हम अगत्ती हवाई अड्डे पर उतरे, जो लक्षद्वीप का एकमात्र हवाई अड्डा है। वास्तव में अगत्ती बूंद के आकार का एक छोटा सा द्वीप है। जिसमें एक गांव बसा हुआ है और दो तीन होटल बने हुए हैं। उसी के एक पतले छोर पर हवाई पट्टी है जिस पर केवल छोटे जहाज उतर सकते हैं। हवाई अड्डे की इमारत भी मामूली सी है।
हमारा होटल कम्पनी की तरफ से पहले से ही बुक था। उसमें पास-पास के दो काटेज हमें दिये गये। काटेजों में सारी सुविधायें थीं। लेकिन वहां बाहर धूल बहुत थी। इसलिए वहां पैर पोंछने के लिए कई पैरदान रखे गये थे। फिर भी धूल की कुछ न कुछ मात्रा कमरों में और बिस्तर पर पहुंच ही जाती थी। पर उससे कोई बड़ी परेशानी नहीं थी।
उन दिनों अगत्ती में वर्षा के कारण आॅफ सीजन चल रहा था। आॅफ सीजन होने के कारण अधिक भीड़ नहीं थी, अनेक काटेज खाली पड़े हुए थे। सीजन में वहां पानी के अनेक तरह के खेल कराये जाते हैं, जिनके लिए शुल्क यात्रियों को स्वयं देना पड़ता है। परन्तु उन दिनों सारे खेल बंद थे। इसलिए हम यों ही समुद्र में नहाते थे। वहां का पानी बहुत साफ था, हालांकि खारी था।
वहां हम एक दिन घूमने के लिए उसी द्वीप पर बसे हुए गांव और उसके चारों ओर के बीचों पर भी गये। वहीं एक जगह जेट्टी (पानी के छोटे जहाज) उतरने की जगह भी बनी हुई थी। संयोग से उस दिन कोई जेट्टी वहां नहीं थी। पूछने पर पता चला कि कोच्चि से वहां जेट्टी रोज आती है और दो या तीन दिन में अगत्ती पहंुचा देती है। अगत्ती में यात्रियों को उतारकर वह तुरंत लौट भी जाती है। यात्रियों को इसी बीच उस जेट्टी में ही इडली सांबर का भोजन मिलता है जिसका मूल्य टिकट में ही शामिल रहता है। मेरी इच्छा एक बार जेट्टी में यात्रा करने की थी, परन्तु समय की कमी के कारण ऐसा नहीं हो सका।
अगत्ती के समुद्र तट बहुत सुंदर हैं। वहां एकदम साफ सफेद रेत है, जिन पर हम देर तक घूमते रहते थे या वहां पड़ी आराम कुर्सियों पर लेटे रहते थे। खाने के समय होटल में काटेजों के बीच में ही अलग से भोजनालय बना हुआ है। वहां ठीक-ठाक सा भोजन मिल जाता था। वहां पर हमें दूसरे बैंकों से आये कुछ सज्जन भी मिल गये थे।
लगभग तीन दिन अगत्ती में रहने के बाद हम वापस उड़ान से कोच्चि लौटे। कम्पनी की ओर से हमें केरल घुमाने के लिए टैक्सी की सुविधा दी गयी थी। टैक्सी वाला निर्धारित समय पर हवाई अड्डे आकर हमें ले गया। उस टैक्सी का ड्राइवर एक सीधा सा केरली ईसाई था, जिसका नाम था जिलमोंन। वह हमें होटल में पहुंचा गया और दूसरे दिन सुबह ही आने का वायदा करके चला गया। उसका घर पास में ही था। इस बार हमें होटल में पहले की तरह पास-पास के ऐसे कमरे नहीं मिले जिनमें एक ही बैठक हो। वे कमरे पहले से घिरे हुए थे। इसलिए हमें आमने सामने के कमरे दिये गये।
वह होटल पुराने जमाने में किसी राजा का महल रहा होगा, जिसको होटल का रूप दिया गया था। उसकी छत पर एक छोटा सा स्विमिंग पूल भी था। हम उस दिन शाम को उसमें भी नहाये। हालांकि बारिश के कारण मौसम ठंडा सा था और स्विमिंग पूल में हमारे अलावा और कोई यात्री नहीं था। दीपांक तैरना भी जानता है इसलिए उसने उसका पूरा आनन्द लिया।
विजय भाई ,. आप की यात्रा पसंद आई .
बहुत बहुत धन्यवाद, भाई साहब !
नमस्ते एवं धन्यवाद श्री विजय जी। यात्रा का वृतांत अच्छा लगा। मैं, मेरी पत्नी, एक मित्र आगरा वासी श्री सुरेन्द्र उपाध्याय व उनकी धर्म पत्नी भी कुछ वर्ष पहले एलटीसी लेकर देहरादून से कोच्चि होते हुवे अगाती टापू पर गए थे। वहां हम दो या तीन दिन रहे थे। द्वीप अच्छा लगा था। वहां की सारी जनसँख्या मुस्लिम है और लगभत ७ या इससे अधिक मस्जिदें है। शायद वहां अन्य धर्म के लोग भूमि आदि लेकर निवास नहीं कर सकते। दृश्य सुहाने है वा जल बहुत ही साफ़ है। रेत भी सफ़ेद रंग का है। हमने वहां फोटो खींचे थे। एक फोटो संलग्न कर रहा हूँ। विवरण अच्छा लगा।
प्रणाम मान्यवर ! केवल अगत्ती ही नहीं पूरे लक्षद्वीप में ९८% आबादी मुस्लिम है। वैसे हिंदुओं के रहने पर कोई रोक नहीं है लेकिन कोई वहाँ रहकर करेगा क्या? वह एकदम उपेक्षित स्थान है।
क्या बात है सर जी आप यात्रा का वर्णन ऐसे
करते हैं कि पाठक स्वयं उस का एक किरदार बन
जाता है।अत्यंत प्रभावशाली लेखन…
बधाई हो
धन्यवाद, वैभव जी !
good
धन्यवाद !