गीत/नवगीत

सत्कर्मों का मान

बैकुंठ गए सब देव, रहे हनुमान धरा पर।
कलियुग में भी सत्कर्मों का मान धरा पर।

भूत-प्रेत,बाधाएं मिटें, हो भक्ति की विजय।
बल,विवेक,विद्या के दाता बजरंगी की जय।

भक्ति से है भक्तों का स्वाभिमान धरा पर।
कलियुग में भी सत्कर्मों का मान धरा पर।

चैत्र मास की पूनम , पवनसुत ने जन्म लिया।
निज बाल लीलाओं से सूर्य को भी तंग किया।

नाम मिला हनुमान वज्र से चोट खा कर।
कलियुग में भी सत्कर्मों का मान धरा पर।

जामवन्त ने याद कराया जब शक्ति का ज्ञान।
माँ सीता को शीश नवाया,लंका हुई शमशान।

रावण को लज्जित किया लंका जला कर।
कलियुग में भी सत्कर्मों का मान धरा पर।

नागपाश से मूर्क्षित लक्ष्मण राम करें विलाप।
सन्जीवनी संग सुमेरु पर्वत ही ले आये आप!

भक्ति,शक्ति से लक्ष्मण के प्राण बचा कर।
कलियुग में भी सत्कर्मों का मान धरा पर।

पिंगाक्ष,रामेष्ट,केसरीनन्दन आदि नाम तुम्हारे।
इन्सान तो क्या भगवान भी हैं आपके सहारे।

हनुमान आशीष मिले,राम का ध्यान जरा कर।
कलियुग में भी सत्कर्मों का मान धरा पर।

वैभव”विशेष”

वैभव दुबे "विशेष"

मैं वैभव दुबे 'विशेष' कवितायेँ व कहानी लिखता हूँ मैं बी.एच.ई.एल. झाँसी में कार्यरत हूँ मैं झाँसी, बबीना में अनेक संगोष्ठी व सम्मेलन में अपना काव्य पाठ करता रहता हूँ।

2 thoughts on “सत्कर्मों का मान

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह वाह !

    • वैभव दुबे "विशेष"

      धन्यवाद सर जी

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