जाने से पहले
जाना तो
है ही
कभी न कभी
जी चाहता है
कि मिलकर
प्रियजन से
कुछ कह लें कुछ सुन लें
जाने से पहले
ये रिश्तों की दूरी
तय कर
करलें पूरी
और मिलकर बताएँ
थी कितनी मजबूरी
वे झगड़े
हम सह लें
जाने से पहले
जो बातें हैं
मन में
निकालें मृदुल
स्वर में
हौले से गुनगुना ले
कोई गीत अहले
जाने से पहले
हवाओं में घोलें
खुशबू यकीं की
छुवन भी पवन की
शायद कहेंगी
और भी कुछ गढ़ले
जाने से पहले
अनुभूतियाँ
जीवन की
स्मृति पटल की
शब्दों को चुनकर
छन्दों में बुनकर
कविता में गढ़ लें
जाने से पहले
अब तो
न चाहूँ मैं शोहरत
ना चाहूँ दौलत
सिर्फ़ इतनी सी ईच्छा
मैं ना भी रहूँ तो
पीढ़ी दर पीढ़ी
मुझे भी समझ ले
जाने से पहले
— किरण सिंह
बहुत अच्छी कविता !
हार्दिक आभार