अन्नदाता…
तेरी लाचारी के लिये, वक्त भला किसके पास है
दौलत के इस आंगन में, तु तो बस अनचाही घास है।
यहां कौन देखता है, तेरे जुडे हुऐ इन लाचार हाथों को
यहां जिसके पास दौलत है, बस वही खास है॥
लोग कहते हैं तू भूख से नही, प्रेम प्रसंग में आत्महत्या करता है
जीने का तरीका नहीं आता, इसलिये खुद ही मरता है।
सरकार कहती है, पेट नही भरती तो अपनी जमीन उसे दो
फिर तू उसी के लिये, बेममतलब का बखेडा करता है॥
वैसे तो तेरे दानो पर, ये सारी दुनियां पलती है
तु सबका पेट भरता है, और दुनियां तुझी को छलती है।
पूजना चाहिये, तेरे इन अन्न देने वाले हाथों को
पर ये दौलत का दौर है, यहां सिर्फ दौलत की चलती है॥
ऐ दुनियां वालों, मैं तुमसे एक सवाल पूछता हूं
अन्न के बिना, क्या कुछ दिन भी जी पाओगे।
अगर वो नहीं उगायेगा, तो रोटी के टुकडे को तरस जाओगे।
अगली बार जब भी खाना खाओगे, तो उस लाचार चेहरे को याद करना।
और तुम्हारी आत्मा, उसे अन्नदाता माने तो उसकी जिन्दगी की फरियाद करना॥
सतीश बंसल