आत्मकथा

आत्मकथा : एक नज़र पीछे की ओर (कड़ी 54)

अगले दिन हमने कोच्चि शहर के दर्शनीय स्थान देखे। एक दो मंदिर, एक चर्च और समुद्र जिसमें पानी के छोटे जहाज खड़े थे। वहां मछलियां पकड़ने का कार्य व्यापक पैमाने पर होता है। कोच्चि एक ऐतिहासिक शहर है जिसे पहले कोचीन कहा जाता था। वहां का बंदरगाह विश्व प्रसिद्ध है जिससे पहले बहुत व्यापार होता था। आजकल वहां नौसेना का बड़ा अड्डा बना हुआ है।

कोच्चि से हमें मुन्नार जाना था। हमारी यात्रा में अगत्ती के बाद मुन्नार ही सबसे अधिक दर्शनीय स्थान रहा। वहां चाय के बागान हैं। पहाड़ी क्षेत्रों की एक-एक इंच जगह पर चाय के पौधे उगाये गये हैं, जिनकी समय-समय पर ऊपर से छंटाई की जाती है। दूर से देखने में चाय के बाग ऐसे लगते हैं जैसे किसी ने सारी धरती पर हरा गलीचा बिछा दिया हो। अद्भुत दृश्य था जिसे देख देखकर मन नहीं भरता था।

मुन्नार में हमें जो होटल मिला था वह हालांकि मुन्नार शहर से काफी दूर था, परन्तु एक पहाड़ पर उसे बहुत ही सुन्दर तरीके से बनाया गया था। प्रत्येक कमरा एक काटेज के रूप में था, जो देखने में बहुत सुन्दर लगता था। हमें दो कमरों वाली काटेज दी गयी थी, जो बहुत आराम दायक थी। बारिश के सजय वहां हल्की ठंड हो गयी थी, परन्तु बाद में मौसम खुल गया और बहुत सुहावना हो गया। फिर हम मुन्नार के आस-पास घूमने निकले। वहां कई अच्छे झरने हैं। हमने मसालों आदि की खरीदारी भी की। हालांकि दुकानदार ने एक चीज का दाम तो लगा लिया लेकिन वह चीज थैले में नहीं रखी। हमने भी ज्यादा ध्यान नहीं दिया।

वहां एक झरना ऐसा है जो बहुत शोर करता है। उसका शोर दूर तक सुनाई पड़ता है और उसके पास जाकर तो बातचीत करना भी असम्भव हो जाता है। इसी तरह एक ईको पाॅइंट है। वहां एक लम्बी झील है या शायद नदी है। उस स्थान के बारे में कहा जाता है कि अगर चिल्लाकर कुछ कहा जाये तो वह लौटकर आता है और अन्तिम शब्द दो बार और साफ सुनायी देता है। पर वहां कोई इसकी जांच नहीं कर रहा था। बारिश भी हो रही थी।

मुन्नार में दो दिन आनन्दपूर्वक गुजारने के बाद हम कोडाईकनाल की ओर चले। यह भी एक पहाड़ी स्थान है पर तमिलनाडु की सीमा में है। वहां एक बड़ी झील है, जिसमें नौका विहार किया जाता है। रास्ते में हमने सैकड़ों की संख्या में पवनचक्कियां लगी देखीं, जो हवा से बिजली बनाती हैं। हमने पहले कभी नहीं देखी थीं। देखकर अच्छा लगा। जब तक हम कोडैकनाल पहुंचे तब तक सब बुरी तरह थक गये थे और शाम भी हो गयी थी। इसलिए नौका विहार का विचार त्याग दिया। वास्तव में हम चंडीगढ़ की सुखना झील में इतनी बार नौका बिहार कर चुके हैं कि अब ज्यादा मजा नहीं आता।

कोडैकनाल का होटल ज्यादा अच्छी नहीं था। पर काम चल गया। अगले दिन हम वहां आसपास देखने को निकले। कई पहाड़ी स्थान हैं। काफी भीड़ भी थी। हालांकि ठंड बिल्कुल नहीं थी बल्कि गर्मी थी। रास्ते में जाम लगा हुआ था। हमारे ड्राइवर जिलमोंन ने हमें बताया कि यहां एक स्यूसाइड पाॅइंट है, जिससे कूदकर लड़के आत्महत्या कर लेते हैं। उस स्थान से निकलने में हमें दो घंटे से अधिक समय लग गया, इतना ट्रैफिक था। मैंने मजाक में जिलमोंन से कहा कि लौटते समय इस रास्ते से मत आना, नहीं तो मुझे यहां आत्महत्या करनी पड़ जाएगी। सुनकर वह भी हंसने लगा।

वहां एक पहाड़ी जंगल है, जहां पेड़ों के बीच बहुत सूखी लकड़ियां पड़ी हुई थीं। वहीं धरती में चट्टानों के बीच एक दरार थी, जिसमें एक आदमी जा सकता था। वहां लड़कों ने बताया कि इस दरार पर रजनीकांत की एक फिल्म की शूटिंग हुई थी।

अगले दिन सुबह हम कोडैकनाल से चले। इस बार दूसरे रास्ते से आये, जो बहुत सुहावना है। रास्ते में कई अच्छे छोटे-छोटे झरने भी देखे। जिनको देखकर तबियत खुश हो गयी। हम अलेप्पी की तरफ जा रहे थे। लगभग 10 बजे हम अलेप्पी पहुंच गये। वहां हमारे लिए एक हाउसबोट (नाव पर पूरा घर) पहले से आरक्षित थी। हम उसमें बैठ गये। हमें 24 घंटे उसी हाउसबोट में रहना था।

यहां अलेप्पी बैकवाटर के नाम से मशहूर है। हमने पहले कभी बैकवाटर नहीं देखा था। वास्तव में समुद्र का पानी गांवों में घुस आता है, और फिर वापस नहीं जाता। उसी को बैकवाटर कहते हैं। अलेप्पी में स्थायी बैकवाटर है। वहां गांव भी बसे हैं और उनमें सब चीजें भी हैं जैसे स्कूल, दुकानें, पोस्टआॅफिस, बैंक आदि। लेकिन जाना पड़ता है नाव से ही। पैदल चलने की सुविधा बहुत कम है। नावों से ही सारा काम होता है। हम सोच रहे थे कि लोग यहां रहते ही क्यों हैं? फिर सोचा कि अगर यहां नहीं रहेंगे तो कहां जायेंगे? उनकी भी मजबूरी है। पानी में कुछ पैदा कर लेते हैं और मछलियां मार लेते हैं, जो वहां बहुत थीं। कुछ लोग नौकरी भी करते हैं और नाव से बाहर जाते हैं।

वहां हमने एक नयी बात देखी- राष्ट्रीय जल मार्ग। जैसे जमीन पर हाई वे होते हैं, वैसे ही वहां पानी के हाईवे बने हुए थे। उनमें मील के पत्थर भी लगे हुए थे। देखकर बहुत आश्चर्य हुआ। वहां पास में ही एक जलक्रीड़ा संस्थान भी था, जिसमें बच्चों को नाव चलाने आदि खेलों का प्रशिक्षण दिया जाता है। हमने देखा कि दर्जनों लड़के लड़कियां समूह में या अकेले ही नाव चलाने का अभ्यास कर रहे थे।

हमारी हाउस बोट को नावचालकों ने काफी घुमाते हुए कहीं दूर ले जाकर खड़ा कर दिया। रास्ते में हमें नाश्ता, भोजन आदि समय पर मिलता था। नहाने धोने की सुविधा भी थी। टीवी भी था। जनरेटर भी। यानी होटलों जैसी सारी सुविधायें। लेकिन नाव से बाहर नहीं जा सकते थे। काफी दूर जाकर एक जगह हमारी हाउसबोट को बांधकर खड़ा कर दिया गया। हमें रातभर वहीं रहना था। पहले हम हाउस बोट से उतरे और थोड़ी सूखी जमीन पर टहले। पास में ही एक गांव था।

हमें रात को मच्छरों का डर था। परन्तु उनके पास कछुआ छाप मच्छर अगरबत्ती जैसे सारे प्रबंध थे। इसलिए आराम से सोने में कोई कठिनाई नहीं हुई। थोड़ी- थोड़ी दूर पर अन्य कई हाउसबोट भी खड़े हुए थे।

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: [email protected], प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- [email protected], [email protected]

6 thoughts on “आत्मकथा : एक नज़र पीछे की ओर (कड़ी 54)

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    कोच्चि में नदी जो बाद में एक बड़े झील में बदला है का सैर अच्छा लगा था हमें भी
    फिर हम 24 सितम्बर को जा रहे हैं

    • विजय कुमार सिंघल

      बहुत अच्छा बहिन जी ! आपकी सफल यात्रा के लिए शुभ कामनायें !

  • Man Mohan Kumar Arya

    आपकी यात्रा का वृतांत पढ़कर हमें अपनी यात्रा का स्मरण हो आया। कोच्चि, मुन्नार की यात्रा हमने भी की है। एक बार १९९४ में हम त्रिवेंद्रम, कन्याकुमारी रामेश्वरम, मदुरै, कोडाइकनाल, चेन्नई, माऊँट आबू व जोधपुर की यात्रा पर गए थे। बहुत अधिक समय बीत चुका है। एक बार पोर्टब्लेयर एवं एक बार श्रीनगर भी गए। अब सोचते है तो यह एक स्वप्न सा लगता है। सभी स्थानो का अपना महत्व है। कश्मीर के हालातो के कारण मैं वहां जाना ही नहीं चाहता था। एक बहुत खास मित्र गए तो उन्होंने बहुत आग्रह किया। मैं नहीं माना। परन्तु उसके कुछ महीनो बाद एक अन्य मित्र श्री उपाध्याय ने बार बार कहा और तब तक कहते ही रहे जब तक की मैंने हां नहीं कह दी। आज सोचता हूँ तो लगता है कि मैने श्रीनगर जाने का इरादा कर के ठीक ही किया था। इसी कारण श्रीनगर, पहलगाम, गुलमर्ग और सोनमर्ग देख सका। ईश्वर का धन्यवाद है कि उसकी कारीगरी देखने का अवसर उसने दिया। कई बार विचार आता है कि जिस ईश्वर की रचना इतनी सुन्दर है तो वह कितना सुन्दर होगा। वेद के अनुसार वह आनंदस्वरूप एवं एक रस है अर्थात सर्वत्र एक समान व एक जैसा, गुड के सामान सब जगह एक जैसा मीठा, है। आपकी यात्रा का वर्णन पढ़कर मैं अपने ख्यालों में खो गया। आपका बहुत बहुत धन्यवाद। आपने बहुत सुन्दर वर्णन किया है। मैंने अपने बारे में जो लिखा है वह शायद प्रतिक्रिया धर्म के विरुद्ध हो, क्षमा प्रार्थी हूँ। आपको नमन है।

    • विजय कुमार सिंघल

      प्रणाम, मान्यवर ! आपने सही लिखा है. किसी का यात्रा वृत्तान्त पढ़ने पर अपनी यात्राओं की याद आ जाना स्वाभाविक है. आपको पसंद आया इसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    विजय भाई , आप की यह यात्रा भी अच्छी लग्गी और खियालों में हम भी साथ साथ घुमते रहे .

    • विजय कुमार सिंघल

      धन्यवाद, भाई साहब. जाना तो हमें मारीशस था, पर केरल घूमकर भी संतोष हुआ.

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