ग़ज़ल
आप से बिछड़े हुए हमको जमाने हो गए ।
आरजू कैदी बनी, दिल जेलखाने हो गए ।
लोग कहते हैं सदा रहना जहाँ में प्यार से
बात आई जब वफ़ा की सौ फ़साने हो गए ।
धूल, मिट्टी, खेत, बागों में गुजारा बचपना
गाँव अब सपना हुआ, देखे जमाने हो गए ।
पूजते हो बेटियों को मान कर देवी सदा
कोख है अब तो कलंकित, कत्लखाने हो गए।
भूल बैठे हो लगा कर फूल को गुलदान में
खुशबुओं के शौक अब तेरे पुराने हो गए ।
जिक्र होता जब वफ़ा का लोग कहते हैं सदा
‘धर्म’ तुम हो सीप हम मोती के दाने हो गए ।
— धर्म पाण्डेय
बहुत अच्छी गजल!