देहरादून पुस्तक मेला समाप्त
ओ३म्
देहरादून में 12 सितम्बर, 2015 से आयोजित मेला कल 20 सितम्बर, 2015 को रात्रि 8 बजे पूर्ण सफलता के साथ निर्विघ्न समाप्त हुआ। अन्तिम दिन भी पूर्व के दिनों की ही तरह लोगों में मेले में आने का उत्साह दिखाई दिया और उन्होंने जमकर पुस्तके क्रय कीं। हमने स्वयं भी अनेक स्टालों से अनेक पुस्तकें ली जो हमारे भावी अध्ययन का आधार होंगी। कल रविवार का अवकाश होने के कारण पूर्वान्ह 11 बजे से ही मेले में भारी संख्या में लोगों ने आना आरम्भ कर दिया था। दिन में वर्षा भी हुई जिससे वातावरण वा मौसम सुहावन व कुछ शीतलता से युक्त हो गया था। मेले में कुछ पुस्तकों के स्टाल ऐसे भी दिखे जो कि खाली खाली दिख रहे थे जबकि दो दिन पूर्व वह पुस्तकों से भरे थे। यह सब मेले में आगन्तुकों के बड़ी संख्या में पधारने और पुस्तकों को क्रय करने से ही सम्भव हुआ। आज आर्यसमाज के स्टाल पर भी विगत दिनों की ही भांति रात्रि 8 बजे तक, जब कि मेला समाप्त हुआ, बड़ी संख्या में लोग आ रहे थे और पुस्तकें खरीद रहे थे। यह अनुभव व स्थिति पुस्तकों के प्रचार के लिए उत्साहित करने वाला स्थिति थी।
आज आर्य समाज के स्टाल पर हमारे जिले के एक माननीय न्यायाधीश महोदय पधारे। उन्होंने कहा कि वह यजुर्वेद के महामृत्युजंय मन्त्र व उसका अर्थ देखना चाहते थे। जज साहब को मन्त्र की संख्या 60 भी ज्ञात थी परन्तु 40 अध्यायों में से मन्त्र किस अध्याय का है, यह ज्ञात होने पर ही पुस्तक को खोल कर अर्थ देखा जा सकता था। हमने तुरन्त आर्यसमाज के पुरोहित पण्डित वेदवसु जी, गुरूकुल, गौतमनगर में श्री शिवदेव जी व स्वामी प्रणवानन्द जी को एक-एक करके फोन कर मन्त्र का पता सूचित करने के लिए कहा। मन्त्र तो सभी को याद है, हमें भी है, परन्तु पता किसी को ज्ञात नहीं था। हमारे स्टाल पर एक वयोवृद्ध आर्य विद्वान श्री रामजी चतुर्वेदी, जो कोलकत्ता के आर्य समाज से सम्बन्ध रखते हैं, उपस्थित थे। उनसे भी हमने मन्त्र का पता पूछा परन्तु उन्हें भी स्मरण नहीं था। हमारे स्टाल पर कुछ पुस्तकों को भी तेजी से देखा, परन्तु उनमें भी यह मन्त्र कहीं नहीं मिला। इसी बीच श्री चतुर्वेदी जी ने हमारे कहे बिना ही कोलकाता कक आर्यसमाज के एक पुरोहित शास्त्री जी को फोन कर दिया और वहां से तुरन्त मन्त्र का पता बता दिया गया जो कि 3/60 था। फिर क्या था, हमने कुछ सेकेण्ड्स में ही मन्त्र निकाला और जज साहब के सामने प्रस्तुत कर दिया। हमारे मित्र महोदय ने जज साहब की कलकत्ता के शास्त्री जी से बात भी करा दी जिसमें उन्होंने मन्त्र के बारे में अनेक महत्वपूर्ण बातें उन्हें बताई। श्री चतुर्वेदी जी ने भी महामृत्युजंय मन्त्र से सम्बन्धित अपने कुछ अनुभव माननीय जज महोदय को कहे। जज साहब ने पूरा मन्त्र व उसका अर्थ देखा और सन्तुष्ट हुए। उन्होंने हमें मन्त्र दिखाते हुए कहा कि महामृत्युजंय मन्त्र उच्चारित मन्त्र से कुछ पड़ा है। उसका जो अन्तिम पाद उन्होंने दिखाया उसे मन्त्र के साथ बोला ही नहीं जाता। हमने देख कर स्वीकार किया और माननीय जज महोदय की इस उहा से सहमत, प्रसन्न व अनुग्रहीत हुए। जज महोदय ने यजुर्वेद भाष्य क्रय किया। इस कार्य से हमें व हमारे वहां उपस्थित 4 साथियों को हार्दिक प्रसन्नता हुई।
आज हमारे स्टाल पर बड़ी संख्या में आगन्तुक आये। आर्यसमाज के सदस्य व वन अनुसंधान संस्थान में कार्यरत वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. विनीत कुमार भी इनमें से एक थे जिन्होंने सभी पुस्तकों को देखा और अपनी पसन्द की पुस्तकें क्रय कीं। उनसे भी अनेक विषयों पर विस्तार से चर्चा हुई। उन्होंने बताया कि जून 2015 में आर्ष गुरूकुल पौंधा, देहरादून में जब हमारा अभिनन्दन किया गया था तो उन्होंने एक श्रोता व दर्शक के रूप में वह पूरा कार्यक्रम देखा व सुना था। वह तभी से हमें जानते थे। आज से ही हम उन्हें भी अपनी इमेल सूची में सम्मिलित कर रहे हैं। आशा है कि अब समय समय पर उनसे भेंट व सूचनाओं का आदान प्रदान होता रहेगा। एक अन्य महत्वपूर्ण व्यक्ति डीआरडीओ के सेवानिवृत वरिष्ठ वैज्ञानिक श्री महेश कुमार शर्मा जी का आगमन था। श्री शर्मा आर्य समाज के विद्वान हैं। आपने कई पुस्तकें लिखी हैं और काफी समय से हमसे इमेल पर जुड़े हुए हैं। बहुंत ही आत्मीयता के वातवारण हमारी एक दूसरे से बातें हुईं। आर्य समाज के ही एक विद्वान श्री ललित मोहन पाण्डेय भी आज हमारे निवेदन पर पुस्तक मेले में आये। उन्होंने हमारे साथ पूरे मेले का भ्रमण किया और मेला समाप्त होने तक हमारे साथ हमारे स्टाल पर रहे। श्री पाण्डेय योग विषयक साहित्य में गहरी रूचि लेते हैं और उन्होंने विगत 15 से 20 वर्षों में योग व ध्यान का अभ्यास भी किया है। उनका मेले में सान्निध्य प्राप्त कर हमें प्रसन्नता हुई। यह आश्चर्य ही कह सकते हैं कि जिस आर्यसमाज से यह स्टाल जुड़ा रहा वहां के अधिकारियों को इस आयोजन में आदि से अन्त तक आने व वहां आगन्तुकों से बातचीत करने का समय समय नहीं मिला। आज के कार्यक्रम में हमारे प्रमुख मित्र श्री राजेन्द्र कुमार काम्बोज भी हमारे निवेदन पर दूसरी बार आये थे और लम्बे समय तक वहां रहे जिससे हमारे सभी साथियों का मनोबल व उत्साह बढ़ा।
आज के दिन हमने भी अपनी पसन्द की अनेक पुस्तकें विभिन्न प्रकाशकों से खरीदी जिनमें कबीरदास जी की रचनायें भी सम्मिलित हैं। कबीर दास जी बहुत पहले अंधविश्वासों का खण्डन करने वाले सन्त हुए हैं जिन्होंने हिन्दू व मुसलमानों के मिथ्याविश्वासों, मान्यताओं व सिद्धान्तों का खण्डन किया है। महर्षि दयानन्द ने उसमें चार चांद लगाये हैं। इस दृष्टि से भी कबीर दास जी का अध्ययन करने की हमारी इच्छा है। कुछ पुस्तकें ऐसी भी थी जो हम लेना चाहते थे, परन्तु वह हमें वहां नहीं मिली। कुल मिला कर देहरादून पुस्तक मेला सफल रहा और हमें अपनी अनेक मधुर स्मृतियां प्रदान कर गया।
–मनमोहन कुमार आर्य
मनमोहन भाई , इस लेख से बहुत सी बातें पता चलीं ,लेख अच्छा लगा .
नमस्ते एवं हार्दिक धन्यवाद आदरणीय श्री गुरमेल सिंह जी लेख पढ़ने और पसंद करने के लिए।
आपको और आपके साथियों को बहुत बहुत साधुवाद, इस श्रेष्ठ कार्य के लिए. मैं आपकी निष्ठां को प्रणाम करता हूँ.
आपको सादर नमन एवं वंदन। मुझे मेले मैं बहुत आनंद की अनुभूति हुई। आपके शब्दों ने हमारे संतोष रूपी सुख में अमृत घोल दिया है। धन्यवाद।