कविता

प्रकाश फैलाउंगा

प्रकाश फैलाउंगा
हम जल कर भी रौशनी फैलाते रहे ,
इसलिए लोग हमको जलाते रहे ,
मेरे जलने को किसी ने देखा ही नहीं ,
मेरी रौशनी पे सब मुस्कराते रहे
न डाला किसी ने कभी तेल इसमें ,
न कोई लेकर आया नयी बाती,
मेरी उठती लौ का नज़ारा सबने देखा ,
नहीं देखी किसी ने मेरी सुलगती हुई छाती ,
नफरत की आंधी मैं चलने ना दूंगा ,
जलूँगा खुद किसी को जलने ना दूंगा
मेरी रौशनी देती रहे पैग़ाम प्यार का,
किसी भी दिल में ‘जलन‘ पलने ना दूंगा,
अब मैं प्रकाश हूँ तो प्रकाश ही फैलाउंगा
जिस से होती रहे जय जय कार सबकी ,
हर तमस को बदल कर रख दूं रौशनी में ,
बस इतनी देता रहे सदा मुझे भगवान शक्ति .
….जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया जन्म दिन --१४/२/१९४९, टेक्सटाइल इंजीनियर , प्राइवेट कम्पनी में जनरल मेनेजर मो. 9855022670, 9855047845

One thought on “प्रकाश फैलाउंगा

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत सुन्दर !

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