आत्मकथा : एक नज़र पीछे की ओर (कड़ी 55- अन्तिम)
हाउस बोट में हमारी रात ठीक से कट गयी हालांकि सारी व्यवस्था के बावजूद मच्छरों ने कुछ परेशान किया और जनरेटर की आवाज भी सोने नहीं दे रही थी।
प्रातःकाल हम दैनिक क्रियाओं से निवृत्त होकर और स्नान-जलपान करके लौटने के लिए तैयार हो गये। यहां हाउसबोट चलाने वाले नाविक भोजन बनाने में भी निपुण होते हैं और यात्री की रुचि के अनुसार सभी तरह का भोजन बना लेते हैं जो स्वादिष्ट भी होता है। कुल मिलाकर हाउसबोट की सेवायें अच्छी थीं।
हमारी हाउसबोट की वापसी यात्रा संक्षिप्त ही रही, क्योंकि इस बार वह एकदम सीधे रास्ते से लौटा लाये। जाने में जहां तीन घंटे लगे थे, वहीं लौटने में केवल पौन-एक घंटा लगा। हाउसबोट पर हमारा एक दिन का प्रवास अच्छा रहा, हालांकि हम यह सोच रहे थे कि इस पर एक दिन से अधिक नहीं रहा जा सकता, क्योंकि बहुत बोरियत भी होती है और कहीं जा भी नहीं सकते। इसी कारण बहुत से लोग तो रात को भी हाउसबोट पर नहीं रुकते बल्कि सुबह जाकर शाम को वापस आ जाते हैं और किसी होटल में ठहरते हैं।
जब तक हमारी हाउसबोट मुख्य जमीन पर आयी, तब तक हमारा ड्राइवर जिलमोंन भी आ चुका था। अब हमें त्रिवेन्द्रम जाकर एक रात रहना था, जो हमारा अंतिम पड़ाव था। अलेप्पी से त्रिवेन्द्रम का रास्ता अच्छा और सीधा बना हुआ है, हालांकि बहुत लम्बा है। रास्ते में एक अच्छे और भीड़ भरे होटल में हमने दोपहर का भोजन किया और दोपहर बाद हम त्रिवेन्द्रम और उसके पास कोवलम बीच पर पहुंचे जहां हमारे लिए होटल पहले से बुक था। होटल में पहुंचाकर हमारे ड्राइवर जिलमोंन ने हमसे विदा ली। वह बहुत अच्छा ड्राइवर है।
उस दिन शाम को हम कोवलम बीच पर टहले और सूर्यास्त के कुछ फोटो भी खींचे। वह बीच हालांकि अधिक सुन्दर नहीं है। लेकिन वहां समुद्री जीवों का भोजन बहुत मिलता है इसलिए विदेशी यात्रियों की भीड़ लगी रहती है। हमारे लिए इनमें कोई आकर्षण नहीं था, इसलिए हमने रात्रि को शाकाहारी भोजन किया।
हमारी उड़ान अगले दिन प्रातःकाल 8 बजे ही थी, इसलिए हमें सुबह 6 बजे ही निकलना था। हमने रात को ही एक टैक्सी बुक करा ली, क्योंकि जिलमोंन को नहीं आना था। निर्धारित समय पर हम होटल से निकलकर हवाई अड्डे पहुंच गये और उड़ान पकड़कर पहले दिल्ली, फिर वहां से लखनऊ आ गये। हमारी यह केरल यात्रा बहुत ही आनन्ददायक रही और किसी को कोई कष्ट भी नहीं हुआ।
समापन
केरल यात्रा से लौट आने के बाद दीपांक अपनी नौकरी के लिए पुणे चला गया। उसका एक सहपाठी ईशान्त शर्मा भी उसके साथ उसी जगह नौकरी पर आया था। दोनों ने अपने निवास की व्यवस्था पुणे के एक बाहरी क्षेत्र में तीन चार अन्य लड़कों के साथ कर ली थी। वहां उसका मन लग गया।
इधर मोना का भी लखनऊ में बी.काॅम में प्रवेश सरलता से हो गया और वह भी अपनी पढ़ाई में व्यस्त हो गयी।
मैं भी अपनी बैंक सेवा में व्यस्त हो गया और साथ-साथ पुस्तक लेखन का कार्य भी चलता रहा। लखनऊ में रहते हुए मैंने और भी नये काम किये, जैसे ब्लाॅग लेखन, जो दो वर्ष चला, मासिक पत्रिका निकालना एवं उसकी वेबसाइट चलाना, जो अभी भी चल रहे हैं, फेसबुक में सक्रिय होना, व्हाट्सएप में दो तीन समूह बनाना आदि। इन सबकी कहानी लम्बी है। इसलिए अपनी आत्मकथा के इस भाग को मैं यहीं विराम देना चाहता हूं। आगे की कहानी यदि प्रभु ने चाहा तो फिर कभी।
इति।
(समाप्त)
वैसे तो कमोबेश हर जीवन एक कहानी ही है, कभी रोचक, कभी उद्वेलक । पर जो चीज़ देखने समझने की है वो कथा की प्रस्तुति, और इस कला में आप श्रेेस्ठ अंको से उत्तीर्ण हुए । बधाई हो । आशा करता हूँ कि इस कहानी का सीक्वेल भी आएगा।
वाह आदरणीय सुंदर लाजवाब आत्मकथा जय माँ शारदे
विजय भाई , आप की सारी कथा का मज़ा लिया और हम भी आप के साथ साथ जाते रहे .दरअसल नावल पड़ने से ज़िआदा बिहतर जीवन कथा ही लगती है किओंकि यह असलीअत होती है .
बहुत बहुत धन्यवाद भाई साहब. आपके प्रोत्साहन से मुझे भी लिखने में मजा आता है.
आज की क़िस्त पढ़ते हुवे यह पता नहीं था की यह इस श्रृंखला की अंतिम किश्त होगी। जानकार मन को एक धक्का लगा। अब निरंतरता में इसे आगे पढ़ने का अवसर नहीं मिलेगा इसका दुःख है। मैने अभी तक आपको जितना पढ़ा उससे लगता है कि आप सदगुणों का भंडार हैं और सात्विक वृति के सज्जन व संत पुरुष हैं। आशा है कि समय समय पर आपकी अन्य अन्य रचनाएँ पढ़ने को मिलती रहेंगी। उसी से काम चलाएंगे। आत्मा कथा के माध्यम से अपना परिचय देने के लिए आभार एवं हार्दिक धन्यवाद। आपको एवं आपके परिवार के कोटिशः हार्दिक शुभकामनायें हैं। ईश्वर इन्हे पूर्ण करें, उस महान प्रभु से यही प्रार्थना है।
प्रणाम, मान्यवर. आपको मेरी आत्म कथा अच्छी लगी तो मेरा परिश्रम सफल हो गया. लिखने को तो अभी बहुत कुछ है, पर यहाँ उतनी सुविधा नहीं है. दो माह बाद सारा परिवार यहाँ आ जायेगा और मेरा डेस्कटॉप भी, तब शायद फिर शुरू करूँगा. तब तक के लिए क्षमा करें. एक बार पुनः आभार !
आप अपनी आत्मकथा की नई श्रृंखला आरम्भ करेंगे तो प्रसन्नता होगी और इसकी प्रतीक्षा रहेगी। बहुत बहुत धन्यवाद