कविता

काम प्यारा होता है चाम नहीं

काम प्यारा होता है चाम नहीं
हर वक्त माँ चिल्लाती थी
जब डांट लगाती
यही कुछ बड़बड़ाती थी
बड़े लाड-प्यार से पाला था
चार लड़कों के साथ हमें भी दुलारा था
पर जब होने लगे हम बड़े
रसोई के आस-पास नही होते खड़े
तब गुस्से में आ कभी -कभी
खूब झाड़ पिलाती थी
काम प्यारा होता है
चाम होता नहीं प्यारा|

ससुराल में शक्ल नहीं देखेगे
काम ही करवा कर दम लेगें
थोड़ा तो कुछ काम सीख लो
लड़कों सी पल रही हो
नाज नखरे सब जो कर रही हो
शादी कर जब दूजे घर जाओगी
नहीं यह सब कर पाओगी
शक्ल देख कोई नहीं जियेगा
अपनी भाभी की तरह तुम्हें भी वहा रहना पड़ेगा
सुन्दरता लेकर नहीं चाटना है
अभी काम बहुत तुम्हें सीखना है
सब काम सीख लोगी तो हाथों-हाथ रहोगी
वरना सास हमेशा कोसती ही रहेगी
काम प्यारा होता है होता नहीं चाम प्यारा
अच्छा होगा सीख लो घर का काम सारा |
++++सविता मिश्रा ++++

 

*सविता मिश्रा

श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में अकेली बिटिया हैं हम | पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकना पड़ा | अंत में इलाहाबाद में स्थायी निवास बना | अब वर्तमान में आगरा में अपना पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी विभाग से सम्बध्द हैं | हम साधारण गृहणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है| क्योकि वह विचार जब तक बोले, लिखे ना दिमाग में उथलपुथल मचाते रहते हैं | बस कह लीजिये लिखना हमारा शौक है| जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी के बाद पति के कहने पर सारे ढूढ कर एक डायरी में लिखे | बीच में दस साल लगभग लिखना छोड़ भी दिए थे क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था | पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी| छपने पर लगा सच में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये थे| दूबारा लेखनी पकड़ने में सबसे बड़ा योगदान फेसबुक का हैं| फिर यहाँ कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम, करुणावती, युवा सुघोष, इण्डिया हेल्पलाइन, मनमीत, रचनाकार और अवधि समाचार में छपा....|