कौन हो तुम ?
कौन हो तुम…….. मेरे हदय में,
लिए वास तुम……. अलछित।
कसक देती हो…… स्वेच्छा से,
शाश्वत स्तिमित मर्म सम्पुटित।
हलचल होती मेरे… तन मन में,
उद्भभूत करता है.. अपरिचित।
अटकलें लाती जीवन के राह में,
कार्य में बाधक बन…. उदित।।
उत्साह नहीं मुझे …तेरे कर्म में,
आसूं देती हो….. मेरे अन्तस।
दूदैववश… सहचर बन गई हो,
देने के लिए जीवन में कसक।।
@रमेश कुमार सिंह
०४-०९-२०१५