कुण्डलियाँ
राम राम मन में बसे, राम नाम में लीन ।
और कछु सूझत नहीं, मन प्रभु के आधीन ।।
मन प्रभु के आधीन, राम को नित ही ध्याऊं ।
राम बिना जीवन जीने की सोच न पाऊं ।।
छोड़ दिये बांधव सभी, छाड़ दिए सब काम ।
निशिदिन मन भजता रहे राम राम श्री राम ।। 1।।
मुखपोथी पर होरही, कवियों की भरमार ,
हमने भी रचना रची, तीखा किया प्रहार ।
तीखा किया प्रहार,सत्य का भान कराया,
रचें सार्थक काव्य, सरल सा मार्ग बताया ।
मन से अगर रचें छोड़ कर लीपा पोती,
सुन्दर बन फिर सब को भाये ये मुखपोथी ।। 2।।
साई हिंदी में रची ,रचना है अनमोल ।
मिसरी जैसे ही लगें , मीठे इसके बोल।
मिसरी जैसे बोल, लुभाते सबके मन को,
भावों से परिपूर्ण, सजाये हर जीवन को
हिंदी में सुन्दर से गीत, रचो मेरे भाई
बहे प्रेम की सरिता ,मीत बने सब साईं ।। 3।।
लता यादव
बहुत खूब !
सुंदर लेखन