कुण्डली/छंद

कुण्डलियाँ

 

राम राम मन में बसे, राम नाम में लीन ।
और कछु सूझत नहीं, मन प्रभु के आधीन ।।
मन प्रभु के आधीन, राम को नित ही ध्याऊं ।
राम बिना जीवन जीने की सोच न पाऊं ।।
छोड़ दिये बांधव सभी, छाड़ दिए सब काम ।
निशिदिन मन भजता रहे राम राम श्री राम ।। 1।।

मुखपोथी पर होरही, कवियों की भरमार ,
हमने भी रचना रची, तीखा किया प्रहार ।
तीखा किया प्रहार,सत्य का भान कराया,
रचें सार्थक काव्य, सरल सा मार्ग बताया ।
मन से अगर रचें छोड़ कर लीपा पोती,
सुन्दर बन फिर सब को भाये ये मुखपोथी ।। 2।।

साई हिंदी में रची ,रचना है अनमोल ।
मिसरी जैसे ही लगें , मीठे इसके बोल।
मिसरी जैसे बोल, लुभाते सबके मन को,
भावों से परिपूर्ण, सजाये हर जीवन को
हिंदी में सुन्दर से गीत, रचो मेरे भाई
बहे प्रेम की सरिता ,मीत बने सब साईं ।। 3।।

लता यादव

लता यादव

अपने बारे में बताने लायक एसा कुछ भी नहीं । मध्यम वर्गीय परिवार में जनमी, बड़ी संतान, आकांक्षाओ का केंद्र बिन्दु । माता-पिता के दुर्घटना ग्रस्त होने के कारण उपचार, गृहकार्य एवं अपनी व दो भाइयों वएकबहन की पढ़ाई । बूढ़े दादाजी हम सबके रखवाले थे माता पिता दादाजी स्वयं काफी पढ़े लिखे थे, अतः घरमें पढ़़ाई का वातावरण था । मैंने विषम परिस्थितियों के बीच M.A.,B.Sc,L.T.किया लेखन का शौक पूरा न हो सका अब पति के देहावसान के बाद पुनः लिखना प्रारम्भ किया है । बस यही मेरी कहानी है

2 thoughts on “कुण्डलियाँ

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूब !

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    सुंदर लेखन

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