प्रभु ही रहनुमा सबका
उठाना खुद ही पड़ता है यहाँ टूटा बदन अपना,
जब तक साँस चलती है कोई कन्धा नहीं मिलता
जला कर दूसरों का घर तमाशा देखते हैं लोग,
करे किसका कोई उपकार, वह बन्दा नहीं मिलता
यहाँ रिश्वत में चढ़ जाते हैं, लाखों के कितने नोट,
कहीं प्याऊ बना ने के लिए, कोई चंदा नहीं मिलता
भजन गाते गवैये की, नज़र टिकती चढ़ावे पर,
बने कोई ‘सूरदास ‘ भक्त ,वह अँधा नहीं मिलता,
कोई व्यापार या कोई नौकरी या हो कोई सेवा,
यहाँ ईमानदारी का ,कोई धंधा नहीं मिलता,
यहाँ मज़बूर जो जितना, उतना ही लूटते हैं लोग,
करे निष्काम की सेवा, कोई कारिंदा’नहीं मिलता,
सभी नाते यहाँ झूठे, इक प्रभु ही ‘रहनुमा’ सबका,
मिले साथी न जब कोई, प्रभु का आसरा मिलता
उठाना खुद ही पड़ता है यहाँ टूटा बदन अपना,
जब तक साँस चलती है कोई कन्धा नहीं मिलता.
–जय प्रकाश भाटिया
अति सुंदर रचना