कविता – दर्द
दर्द मुझ से
गुनगुनाते हुये
तन्हाई में
अक्सर पूछता है
मैं तो पूरी शिद्दत से
वफा निभाता हूँ
भोर – संध्या सा
हमारा नाता है
तुम क्यों मुझे
ठुकरा कर
बेवफाई का ख़िताब
पाने को आतुर
रहती हो
मैं कहती हूँ
जिंदगी पूरी गुजर गयी
तेरे ही साथ
अंतिम बेला में
चंद पल मैं भी
हर्ष को महसूस
करना चाहती हूँ
दर्द ठठा कर
हँस पड़ता है
ना बहना ये तो
होना संभव नहीं
मुझ को भाता
कोई और नहीं है
तेरे सिवा ना कोई
इस लोक में
दूसरा आसरा है
जब तक जीवन है
तेरा मेरा नाता
जन्म-जन्मांतर का है
— मँजु शर्मा
सुंदर रचना