लघुकथा

~पुरानी खाई -पीई हड्डी~

अस्त्र-शस्त्रों से लैस पुलिस की भारी भीड़ के बीच एक बिना जान-जहान के बूढ़े बाबा और दो औरतों को कचहरी गेट के अन्दर घुसते देख सुरक्षाकर्मी सकते में आ गए |
“अरे! ये गाँधी टोपीधारी कौन हैं ?”
“कोई क्रिमिनल तो न लागे, होता तो हथकड़ी होती |”
“पर, फिर इतने हथियारबंद पुलिसकर्मी कैसे-क्यों साथ हैं इसके ?” गेट पर खड़े सुरक्षाकर्मी आपस में फुसफूसा रहे थे |
एक ने आगे बढ़ एक पुलिसकर्मी से पूछ ही लिया, “क्या किया है इसने? इतना मरियल सा कोई बड़ा अपराध तो कर न सके है |”
“अरे इसके शरीर नहीं अक्ल और हिम्मत पर जाओ !! बड़ा पहुँचा हुआ है| पूरे गाँव को बरगलाकर आत्महत्या को उकसा रहा था |” सिपाही बोला
“अच्छा! लेकिन क्यों ?” सुरक्षाकर्मी ने पूछा
“खेती बर्बाद होने का मुआवज़ा दस-दस हजार लेने की जिद में दस दिन से धरने पर बैठा था | आज मुआवज़ा न मिलने पर इसने और इसकी बेटी,बीबी ने तो मिट्टी का तेल उड़ेल लिया था | मौके पर पुलिस बल पहले से मौजूद था अतः उठा लाए |”
“बूढ़े में इसके लिए जान कैसे आई ?” सुरक्षाकर्मी उसके मरियल से शरीर पर नज़र दौड़ाते हुए बोला|
“अरे जब भूखों मरने की नौबत आती है न तो मुर्दे से में भी जान आ जाती है, ये तो फिर भी पुरानी खाई -पीई हड्डी है |” व्यंग्य से कहते हुए दोनों फ़ोर्स के साथ आगे बढ़ गया |

“गाँधी टोपी में इतना दम, तो गाँधी में …” सुरक्षाकर्मी बुदबुदाकर रह गया |

*सविता मिश्रा

श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में अकेली बिटिया हैं हम | पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकना पड़ा | अंत में इलाहाबाद में स्थायी निवास बना | अब वर्तमान में आगरा में अपना पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी विभाग से सम्बध्द हैं | हम साधारण गृहणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है| क्योकि वह विचार जब तक बोले, लिखे ना दिमाग में उथलपुथल मचाते रहते हैं | बस कह लीजिये लिखना हमारा शौक है| जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी के बाद पति के कहने पर सारे ढूढ कर एक डायरी में लिखे | बीच में दस साल लगभग लिखना छोड़ भी दिए थे क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था | पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी| छपने पर लगा सच में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये थे| दूबारा लेखनी पकड़ने में सबसे बड़ा योगदान फेसबुक का हैं| फिर यहाँ कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम, करुणावती, युवा सुघोष, इण्डिया हेल्पलाइन, मनमीत, रचनाकार और अवधि समाचार में छपा....|

2 thoughts on “~पुरानी खाई -पीई हड्डी~

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    उम्दा लेखन बच्ची

  • वैभव दुबे "विशेष"

    हृदयस्पर्शी कहानी

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