ग़ज़ल- “वो एक पल”
वो कितना सुखमय अवसर था.
हम दोनों का मौन मुखर था
शब्दों ने चुप्पी साधी थी,
बोल रहा अक्षर-अक्षर था.
मेरी बाँहों में चन्दा था,
धरती पर उतरा अम्बर था.
सागर के भीतर थी सरिता,
या सरिता में ही सागर था.
कोई और नहीं था सँग में,
संग प्रिया के बस प्रियवर था.
वो जीवन का इक पल था पर,
लगता-जीवन से बढ़कर था.
— डॉ.कमलेश द्विवेदी
मो.09415474674