कह-मुकरनी
‘कह-मुकरनी’ का अर्थ है ‘कहकर मुकर जाना’ यानी अपनी बात से पलट जाना। ये लघु कविताएँ लिखने की एक विशेष शैली है। इसमें एक महिला अपनी सखी से कुछ बातें कहती हैं, जो पति के बारे में भी हो सकती हैं और एक अन्य वस्तु के बारे में भी। जब उसकी सखी कहती है कि क्या तुम अपने पति की बात कर रही हो? तो वह कहती है, ‘नहीं, मैं तो उस वस्तु की बातें कर रही हूँ।’ यही ‘कह-मुकरनी’ है।
इसे ठीक से समझने के लिए एक उदाहरण लीजिए-
तरह तरह से मुँह मटकावै।
खेल दिखाकर मोहि रिझावै।
जी चाहै ले जाऊँ अन्दर।
ए सखि साजन? ना सखि बन्दर!
इसमें पहली तीन बातें पति के बारे में भी हो सकती हैं और बन्दर के बारे में भी। जब उसकी सहेली कहती है- ‘ए सखि साजन ?’ तो वह फौरन कहती है- ‘ना सखि बन्दर।’
प्राचीन काल में कह-मुकरनी लिखने की परम्परा बहुत लोकप्रिय थी। कहा जाता है कि तेरहवीं शताब्दी के प्रसिद्ध जनकवि अमीर खुसरो ने यह परम्परा चलायी थी। बाद में कई उर्दू-हिन्दी कवियों जैसे भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने इस विधा को लोकप्रिय बनाया। कभी-कभी आज भी प्राचीन साहित्य और पत्र-पत्रिकाओं में कह-मुकरनी देखने को मिल जाती हैं।
कह-मुकरनी पहेली का काम भी करती थी। इसमें चौथी लाइन को छिपाकर पहली तीन लाइनें ही बोली जाती थीं और फिर पूछा जाता था कि चौथी लाइन क्या होगी?
यहाँ मैं अमीर खुसरो की कुछ कह-मुकरनियाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ। शायद आपको भी पसन्द आयें।
1. वो आये तब शादी होय। उस बिन दूजा और न कोय।
मीठे लागें वाके बोल। ए सखि साजन? ना सखि ढोल!
2. ऊँची अटारी पलंग बिछायौ। मैं सोयी मेरे सिर पर आयौ।
खुल गयीं अखियाँ भयौ अनन्द। ए सखि साजन? ना सखि चंद!
3. पड़ी थी मैं अचानक चढि़ आयौ। जब उतर्यौ तो पसीना आयौ।
सहम गयी नहिं सकी पुकार। ए सखि साजन? ना सखि बुखार!
4. सेज पड़ी मोरी आँखों आया। डाल सेज मोहि मजा दिखाया।
किससे कहूँ अब मजा मैं अपना। ए सखि साजन? ना सखि सपना!
5. जब वो मेरे मन्दिर आवै। सोते मुझको आन जगावै।
पढ़त-फिरत वो विरह के अक्षर। ए सखि साजन? ना सखि मच्छर!
6. लिपट-लिपट के वाके सोई। छाती से छाती लगा के रोयी।
दाँत से दाँत बजा तो ताड़ा। ए सखि साजन? ना सखि जाड़ा!
अब दो कह-मुकरनियाँ मेरी भी पढ़ लीजिए-
1. झूठे-झूठे वादे करता। कभी न उनको पूरे करता।
गरज पड़े तब दर्शन देता। ए सखि साजन? ना सखि नेता!
2. जब मर्जी हो तब आ जावै। घंटी देकर हमें बुलावै।
उसे छोड़कर जाये कौन। ए सखि साजन? ना सखि फोन!
ज्ञानवर्द्धक आलेख
अच्छी कह मुकरी
विजय भाई , कह मुकरनी तो बहुत दिलचस्प लगी .इस से पहले लीला जी ने भी लिखी थीं लेकिन मुझे समझ नहीं आई थीं लेकिन आप के समझाने से मज़ा आया . कृपा और भी लिखिए .
बहुत बहुत धन्यवाद, भाई साहब ! कह मुकरनी के बारे में इतनी ही जानकारी होती है. बाकी तो उदहारण होते हैं.