दफन हया है, तार तार मर्यादा है…
दफन हया है, तार तार मर्यादा है।
हर कोई दानवता पर आमादा है॥
जानें दौलत का, ये कैसा नशा चढा।
मूल्यों की लाशों पर, आदम हुआ खडा॥
बहा रहा है आंसू, रिश्तों का आंगन।
हर कोई अपनी दुनियां में हुआ मगन॥
अब रुपया भाई है, रुपया बहना है।
रुपया चाल चलन, आदर का गहना है॥
इसके आगे हर नाता बेमानी है।
सब कुछ रुपया, बाकी पानी पानी है॥
तेरी हवस ने निगल लिये, पावन नाते।
लाशों पर चलकर भी लोग, तुझे पाते॥
नीति रीति धनवानों का, गुणगान करे।
कौन भला अब, दीन हीन का ध्यान धरे॥
उनकी आहों को, सुनता है कौन यहां।
उनकी बारी आने पर, सब मौन यहां॥
उनके जीवन मरण की है, परवाह किसे।
ऐसे तुच्छ मलीनों की है, चाह किसे॥
कोख में ही दम तोड रही है, जग जननी।
कफन मौत के ओढ रही है, जग जननी॥
सहमी सी रहती है, मर मर जीती है।
रो लेती है, गम के आंसू पीती है॥
आग कभी, तेजाब में जलती है नारी।
हर युग अंगारो पर, चलती है नारी॥
अन्न उगाने वाला, भूखा मरता है।
वोट उगाहने वाला, शाशन करता है।
छप्पन भोग लगाने वालों, सोचो तो।
नित नव व्यंजन, खाने वालों सोचो तो।
खुद को फांसी पर, जब वो लटकाता है।
कैसे अन्न, तुम्हारे हलक में जाता है॥
दरबारों से, बाहर निकल के देखो तो।
दर्द हमारा भी, तुम चल के देखो तो।
आंसू है मातम है, और गम ही गम है।
जितना भी रोते है, उतना ही कम है।
जागो सत्ता के मद में, सोने वालों।
शर्म हया लज्जा, सब कुछ खोने वालों।
आओ देखो, कांटों के इस जंगल को।
भ्रष्टाचार के बीजों को बोने वालों॥
सतीश बंसल
उम्दा सोच
अद्धभुत लेखन
हौसला बढाने के लिये आपका हृदय से आभार.. विभा जी…