ग़ज़ल
तीरगी घबरा गई है रौशनी के सामने
रासता मुश्किल नही है आदमी के सामने
या खुदाया प्यार में ऐसे दुखद हालात क्यों
जिंदगी का मोल कम है जिंदगी के सामने ।
एक चिंगारी जलाती बस्तिया कितनी बसी ।
प्रेम की बाते करो तुम हर किसी के सामने ।
प्यार की ताकत नही तुझको पता ये आदमी
हारता वैराग भी है कामिनी के सामने
जो लगाता मोल है तेरी वफाओं का सदा ।
टेकना घुटने नही ऐसे धनी के सामने
अब कभी छत पर न आना चाँद के दीदार को
चाँद गाफिल आज कल है चाँदनी के सामने ।
है जहाँ की रीत ये कैसी निराली दोस्तों
क्रोध भी आता नही सबको बली के सामने ।
जिंदगी में “धर्म “तुम रखना ये अंदाजे बयां
शांत सागर सा रहो , उफनी नदी के सामने ।
— धर्म पाण्डेय