गीतिका/ग़ज़ल

गज़ल : कितनी भला कटुता लिखें

भर्त्सना के भाव भर, कितनी भला कटुता लिखें?
नर पिशाचों के लिए, हो काल वो रचना लिखें।

नारियों का मान मर्दन, कर रहे जो कापुरुष
न्याय पृष्ठों पर उन्हें, ज़िंदा नहीं मुर्दा लिखें।

रौंदते मासूमियत, लक़दक़ मुखौटे ओढ़कर
अक्स हर दीवार पर, कालिख पुता उनका लिखें।

पशु कहें, किन्नर कहें, या दुष्ट दानव धृष्टतम
फर्क उनको क्या भला, जो नाम, जो ओहदा लिखें।

पापियों के बोझ से, फटती नहीं अब ये धरा
खोद कब्रें, कर दफन, कोरा कफन टुकड़ा लिखें।

हों बहिष्कृत परिजनों से, और धिक्कृत हर गली
डूब जिसमें खुद मरें वो, शर्म का दरिया लिखें।

कब तलक घिसते रहेंगे, रक्त भरकर लेखनी
हों न वर्धित वंश, उनके नाश को न्यौता लिखें

कल्पना रामानी

*कल्पना रामानी

परिचय- नाम-कल्पना रामानी जन्म तिथि-६ जून १९५१ जन्म-स्थान उज्जैन (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवास-नवी मुंबई शिक्षा-हाई स्कूल आत्म कथ्य- औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद मेरे साहित्य प्रेम ने निरंतर पढ़ते रहने के अभ्यास में रखा। परिवार की देखभाल के व्यस्त समय से मुक्ति पाकर मेरा साहित्य प्रेम लेखन की ओर मुड़ा और कंप्यूटर से जुड़ने के बाद मेरी काव्य कला को देश विदेश में पहचान और सराहना मिली । मेरी गीत, गजल, दोहे कुण्डलिया आदि छंद-रचनाओं में विशेष रुचि है और रचनाएँ पत्र पत्रिकाओं और अंतर्जाल पर प्रकाशित होती रहती हैं। वर्तमान में वेब की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘अभिव्यक्ति-अनुभूति’ की उप संपादक। प्रकाशित कृतियाँ- नवगीत संग्रह “हौसलों के पंख”।(पूर्णिमा जी द्वारा नवांकुर पुरस्कार व सम्मान प्राप्त) एक गज़ल तथा गीत-नवगीत संग्रह प्रकाशनाधीन। ईमेल- [email protected]